a very short essay on Mele ka varnan in Hindi
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किसी मेला का आंखो देखा वर्णन :उज्जैन का कुम्भ का मेला, पूरे भारत मे प्रसिद्ध है। पिछले वर्ष मुझे इसे देखने का अवसर मिला । हिन्दू मान्यताओ के अनुसार ऐसा माना जाता है कि समुन्द्र मंथन मे जो अमृत का कुम्भ अर्थात घड़ा मिला था , उसकी कुछ बुँदे उज्जैन मे भी गिरी थी। इसी लिए यहाँ हर 12 वर्ष बाद कुम्भ मेले का आयोजन होता है। यहाँ की नदी मे सभी प्रातः काल स्नान करते है । इस मेले मे बच्चो के लिए भी कई झूले और खेल होते है। यहाँ पर भिन्न भिन्न प्रकार के खिलौनो की दुकाने भी सजी होती है। मेले मे कई आयोजन होते है ,जैसे कठपुतली का खेल ,जादूगर आदि । मैंने भी कठपुतली का खेल देखा , जिसमे एक राजा- रानी की कहानी को कठपुतलियों के माध्यम से प्रस्तुत किया गया था। जादूगर ने भी कई आश्चर्यजनक करतब दिखाये । मेले मे आसपास के कई गाँव के लोग आते है और अपनी खरीददारी करते है। इस मेले को देखने मे मुझे बहुत आनंद की प्राप्ति हुई और यह मेरे लिए हमेशा यादगार रहेगा।
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मेले का वर्णन
भारतीय सभ्यता और संस्कृति में मेलों का विशेष महत्व है। कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक तथा असम से लेकर कच्छ की खाड़ी तक न जाने कितने प्रकार के मेले भारत में लगते हैं। इन सभी मेलों का अपना अपना महत्व है। मेले न केवल मनोरंजन के साधन हैं, अपितु ज्ञानवर्द्धन के साधन भी कहे जाते हैं। प्रत्येक मेले का इस देश की धार्मिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक परम्पराओं से जुड़ा होना इस बात का प्रमाण हैं कि ये मेले किस प्रकार जन मानस में एक अपूर्व उल्लास, उमंग तथा मनोरंजन करते हैं। भारत में लगने वाले मेलों का सम्बन्ध अनेक प्रकार के विषयों से जुड़ा हुआ है। कुछ मेले पशुओं की बिक्री के लिए होते हैं, कुछ मेलों का किसी धार्मिक घटना अथवा पर्व के साथ सम्बन्ध जुड़ा रहता है, तो कुछ मेले किसी स्थान विशेष से जुड़े रहते हैं।उत्तर भारत के उत्तर प्रदेश में एक जिला है, जिसका नाम है- मेरठ। इसी मेरठ में प्रतिवर्ष एक मेले का आयोजन होता है। इस मेले का नाम नौचन्दी का मेला है। यह मेला सम्पूर्ण उत्तर प्रदेश में अपना एक विशिष्ट तथा विशेष स्थान रखता है। यह मेला प्रतिवर्ष मार्च अप्रैल के महीने में लगता है। मेले के लिए स्थान नियत है तथा प्रतिवर्ष उसी स्थान पर मेला लगता है। नौचन्दी का मेला लगभग 10-15 दिन तक चलता है। मेले का प्रवेश द्वारा ‘शम्भूदास गेट’ बहुत सजाया जाता है। पूरे मेले में सफाई तथा विद्युत का प्रकाश देखने लायक होता है। इस मेले में बहुत से बाजार लगते हैं उनमें पूरे देश भर से व्यापारी अपना अपना सामान बेचने आते हैं। दिन में यह मेला बिल्कुल फीका रहता है। अधिकांश दुकानदार भर जगने के कारण दिन में देर तक सोते हैं और दोपहर के बाद ही अपनी दुकानें लगाते हैं। मेरठ नगरपालिका इस मेले की सफाई आदि का प्रबन्ध करती है। इसकी जितनी भी प्रशंसा की जाए, थोड़ी है। जैसे ही सूर्य छिपने का समय आता है, पूरे मेले में रोशनी की जगमगाहट फैल जाती है और भीड़ धीरे धीरे बढ़ने लगती है। रात के 9-10 बजे तक भीड़ बढ़ती ही रहती है और पूरी रात मेला चलता है। लोग तरह तरह की चीजें खरीदते हैं। मेले में अनेक प्रकार के मनोरंजन – जैसे सरकस, झूले, बड़ा झूला, मौत का कुआँ, कवि दरबार, मुशायरा, नाटक, कव्वाली, रंगा रंग कार्यक्रम तथा अन्य अनेक प्रकार के मनोरंजक खेलकूद सभी का मन मोह लेते हैं। मेलों में पुलिस विभाग, अग्निशामक दल, स्काउट्स एण्ड गाइड्स तथा अन्य अनेक समाज सेवी संस्थाओं का सहयोग रहता है। मेले में परिवार नियोजन, कृषि विभाग तथा दस्तकारी आदि की प्रदर्शनी भी लगाई जाती है। नौचन्दी का मेला उत्तर भारत का विशेष मेला है। इसका अपना महत्व है। यह मेला हिन्दू मुस्लिम एकता का प्रतीक है। यहाँ चण्डी देवी का मन्दिर है तथा ‘बालेमियाँ का मजार’ भी। हिन्दू तथा मुस्लिम दोनों अपनी अपनी श्रद्धानुसार पूजा करते हैं। गतवर्ष मार्च में मैंने यह मेला देखा था। मुझे लगा कि पूरा भारतवर्ष ही इस मेले में आ गया है। भारत की सांस्कृतिक तथा धार्मिक एकता के लिए इस प्रकार के मेलों की बहुत आवश्यकता है।
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