.१. (आ) गक्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतिया पूण
में समझती हूँ, रचना के इस मूर्खतापूर्ण 'क्रांति' में उसकी सहायता न करने का तुम्हारा निर्णय एक सही निर्णय
है पर तटस्थ रनहा ही काफी नहीं है। यदि रचना सचमुच तुम्हारी प्यारी सहेली है तो उसका हित-अहित देखना भी
तुम्हारा काम है। उसमें हस्तक्षेप करना भी।
पर रचना को इसके लिए दोष देने व उसकी भर्त्सना करने से भी बात नहीं बनेगी, बिगड़ जरूर सकती है। हो
सकता है, कथित प्यार के जुनून में इसका उलटा असर हो और वह तुम्हारी बात का बुरा मानकर तुमसे कन्नी
काटने लगे। इसलिए संभलकर बात करनी होगी और सूझ-बूझ से बात सँभालनी होगी।
दोष अकेली रचना का है भी नहीं। दोष उसकी नासमझ उम्र का है या उसके उस परिवेश का है, जिसमें उसे
सँभलकर चलने के संस्कार नहीं दिए गए हैं। यह उम्र ही ऐसी है जब कोई भावुक किशोरी किसी युवक की प्यार भरी,
मीठी-मीठी बातों के बहकावे में आकर उसे अपना सब कुछ समझने लगती है और कच्ची, रोमानी भावनाओं में
बहकर जल्दबाजी में मूर्खता का बैठती है। पछतावा उसे तब होता है जब पानी सिर से गुजर चूका होता है।
इत्त अल्हड उम्र में अगर वह लड़की अपने परिवार के स्नेह संरक्षण से मुक्त है, आजादी के नाम पर स्वयं को
जरूरत से ज्यादा अहमियत देकर अंतर्मुखी हो गई है तो उसके फिसलने की संभावना अधिक बढ़ जाती है। अपने
में अकेली पड़गई लड़की जैसे ही किसी लड़के के संपर्क में आती है, उसे अपना हमदर्द समझ बैठती है और उसके
बहकने की, उसके कदम भटकने की संभावना और भी बढ़ जाती है। लगता है, अपने परिवार से कटी रचना के
साथ ऐसा ही है। यदि सचमुच ऐसा है तो तुम्हें और भी सावधानी से काम लेना होगा अन्यथा उसे समझाना मुश्किल
होगा, उलटे तुम्हारी दोस्ती में दरार आ सकती है।
२
कति १-आकलन
(१) आकृति पूर्ण कीजिए।
लेखिका के अनुसार रचना के प्रति उसकी बेटी का काम
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Gi gyi sjjगछझगशठखशथडडथझडखशठहखहगझदडगथद
Explanation:
थेझआझगशगशगहगशगधगझगझगशगशघझघघझचझ
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