आँगन में लिए चाँद के टुकड़े को खड़ी
हाथों पे झुलाती है उसे गोद भरी
रह-रहके हवा में जो लोका देती है
गूंज उठती है खिलखिलाते बच्चे की हँसी
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Wow.. so nice
I like this poem too much
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