आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी की निबंध कला पर प्रकाश डालिए
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आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी जी भारत के हिंदी साहित्य के जाने माने निबंध लेखक माने जाते थे| उनका नाम भारत के जाने माने हिंदी साहित्य के वरिष्ठ निबंधकार में आता है| उन्होंने अपने जीवनकाल में बहुत से हिंदी एवं संस्कृत की रचनाए की थी| उनका जन्म भारत के उत्तर प्रदेश के बलिया जिले में आरत दुबे का छपरा नामक गांव में हुआ था| उनकी रचनाओं को आज के समय में भी बहुत सराहना जाता है|कहते हैं, पर्वत शोभा-निकेतन होते हैं। फिर हिमालय का तो कहना ही क्या ! पूर्व और अपर समुद्र-महोदधि और रत्नाकर-दोनों का दोनों भुजाओं से थाहता हुआ हिमालय ‘पृथ्वी का मानदण्ड’ कहा जाय तो गलत क्या है ? कालिदास ने ऐसा ही कहा था। इसी के पाद-देश में यह जो श्रृंखला दूर तक लोटी हुई है, लोग इस ‘शिवालिक’ श्रृंखला कहते हैं। ‘शिवालिक’ का क्या अर्थ है, ‘शिवालक’ या शिव के जटाजूट का निचला हिस्सा तो नहीं है ? लगता तो ऐसा ही है। ‘सपाद-लक्ष’ या सवा लाख की मालगुजारी वाला इलाका तो वह लगता नहीं। शिव की लटियाई जटा ही इतनी सूखी, नीरस और कठोर हो सकती है। वैसे, अलकनंदा का स्रोत्र यहाँ से काफी दूर पर है, लेकिन शिव का अलक तो दूर-दूर तक छितराया ही रहता होगा। सम्पूर्ण हिमालय को देखकर ही किसी के मन में समाधिस्थ महादेव की मूर्ति स्पष्ट हुई होगी। उसी समाधिस्थ महादेव के अलकाजल के निचले हिस्से का प्रतिनिधित्व यह गिरि-श्रृंखला कर रही होगी। कहीं-कहीं अज्ञात-नाम-गोत्र झाड़-झंखाड़ और बेहया-से पेड़ दिख अवश्य जाते हैं, पर कोई हरियाली नहीं। दूब तक तो सूख गई है। काली-काली चट्टानें और बीच-बीच में शुष्कता की अंतर्निरुद्ध सत्ता का इजहार करने वाली रक्ताभ रेती ! रस कहाँ है ? ये तो ठिगने-से लेकिन शानदार दरख्त गर्मी की भयंकर मार खा-खाकर और भूख-प्यास की निरन्तर चोट सह-सहकर भी जी रहे हैं। बेहया हैं, क्या ? या मस्तमौला हैं ? कभी-कभी जो ऊपर से बेहया दिखते हैं, उनकी जड़े काफी गहरे पैठी रहती हैं। ये भी पाषाण की छाती फाड़कर न जाने किस अतल गह्नर में अपना भोग्य खींच लाते हैं।
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आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी की निबंध कला:
Explanation:
हिंदी लेखक, साहित्यकार, इतिहासकार, निबंधकार, आलोचक और विद्वान हजारी प्रसाद द्विवेदी 19 अगस्त 1907 से 19 मई 1979 तक रहे।
कई उपन्यास, निबंधों का संग्रह, मध्यकालीन भारतीय धार्मिक आंदोलनों पर ऐतिहासिक अध्ययन, विशेष रूप से कबीर और नाथ संप्रदाय, और हिंदी साहित्य के ऐतिहासिक सारांश सभी उनके द्वारा लिखे गए थे।
भारतीय रचनात्मक और आलोचनात्मक लेखन में द्विवेदी का योगदान शानदार है, और उनकी रुचियां विविध हैं। वे सर्वश्रेष्ठ साहित्यकारों में से एक थे।
साहित्यिक आलोचना और इतिहास में उनके उल्लेखनीय योगदान में निम्नलिखित शामिल हैं:
अंग्रेजी साहित्य का आदिकला; हिंदी साहित्य की भूमिका
ऊपर वर्णित उनके लेखन ने हिंदी साहित्य में समालोचना के इतिहास को एक नई दिशा प्रदान की।
भारत की मध्यकालीन धार्मिक संस्कृति की उनकी ऐतिहासिक परीक्षा को भी नीचे सूचीबद्ध कार्यों में प्रस्तुत किया गया है:
कबीर, मध्यकालिन धर्म साधना, और नाथ संप्रदाय इसके उदाहरण हैं।
मध्ययुगीन संत कबीर के उनके अध्ययन को एक उत्कृष्ट कृति माना जाता है और इसमें कबीर के लेखन, कार्यों और शिक्षाओं का गहन विश्लेषण शामिल है।
वे एक प्रसिद्ध उपन्यासकार भी थे। उनकी पुस्तकें ऐतिहासिक आंकड़ों और विषयों पर आधारित थीं। नीचे सूचीबद्ध उनके ऐतिहासिक उपन्यासों को क्लासिक्स माना जाता है:
- पुनर्नवा
- बनभट्ट की आत्मकथा (1946)
- अनामदास का पोथा
- चारु-चंद्र-लेखा
वे एक प्रतिभाशाली निबंधकार भी थे। उनके कुछ असाधारण निबंधों में शामिल हैं:
- शिरीष के फूल कल्पत (शिरीष के फूल और अन्य निबंध) में शामिल है, जो बारहवीं कक्षा के लिए एक एनसीईआरटी हिंदी पाठ्यपुस्तक है।
- अशोक के फूल
- कुटाजी
- नखोन क्यों बरहते हैं
- आलोक पर्व
इसके अतिरिक्त, उन्होंने अंग्रेजी और अन्य भाषाओं से हिंदी में कई पुस्तकों का प्रतिपादन किया। इनमें शामिल हैं:
- पुराण प्रबंध संग्रह
- प्रबंध-चिंतामणि (प्राकृत से)
- विश्व परिचय
- लाल कनेरो
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