आह! इस खेवा की! -
कौन थामता है पतवार ऐसे अंधड़ में,
अंधकार परिवार गहन नियति सा उमड़ रहा है, ज्योत रेखाहिं क्षुब्ध हो
विच ले चला है काल धवार अनंत में सांस सफारी सी अटकी है, किसकी आशा में
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................ njj ...........
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