"आज आदमी भाग दौड़ की जिन्दगी में इतना तनावग्रस्त होता जा रहा है कि उसे अपनी सुख-सुविधा के अलावा न तो कुछ दिखाई देता है न ही कुछ समझ आता है। परिणामत: परिवार की परिभाषा ही बदल गई है।" प्रस्तुत उक्ति से आप कितना सहमत हैं ? लिखें।
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यह कटुसत्य है कि आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में आम आदमी तनावग्रस्त हो रहा है। वह कम समय में अधिक-से-अधिक पाना और बड़े से बड़ा व्यक्ति होना चाहता है। भौतिकवाद ने इसे और भी तनावग्रस्त बना दिया है। हम अपने शारीरिक तथा मानसिक विकास से कोसों दूर होते जा रहे हैं। मेरे विचार से आज के विभिन्न तनावों से मुक्त होकर स्वस्थ व संपूर्ण जीवन का आनंद लेने के लिए साहित्य, संगीत एवं कला का सहारा लेना चाहिए। जब से मानव सभ्यता का विकास हुआ है तब से मनोरंजन के नए-नए तरीके अपनाए जा रहे हैं। साहित्य, संगीत एवं कला का मानव जीवन में विशिष्ट स्थान है। इनसे न केवल मनोरंजन होता है अपितु हमारे विकार भी दूर होते हैं। हमें नई प्रेरणाएँ मिलती हैं और हम उदात्त, उदार, सत्याधारित एवं निश्छल जीवन की ओर उन्मुख होने लगते हैं। ये हमारी सद्वृत्तियों को जगाने और पल्लवित करने वाले उपकरण हैं। सर्वप्रथम साहित्य की बात की जाए साहित्य का अर्थ ही मनुष्य का हित-साधन है। मानव का स्वभाव है कि वह सीधे-सीधे दिए जाने वाले उपदेशों को ग्रहण नहीं करता। वही उपदेश जब निहित संदेश के रूप में साहित्य के माध्यम से दिए जाते हैं तो मनुष्य का साधारणीकरण हो जाता है। वह स्वयं को साहित्यिक परिवेश के अनुसार ढालने लगता है। वह उन स्थितियों, घटनाओं, पात्रों या भावनाओं को हृदय में स्थान दे देता है। उसे खल पात्रों और सज्जनों का बोध होने लगता है। धीरे-धीरे वह सत्साहित्य के माध्यम से अपने आपको ऊपर उठता अनुभव करता है। कहा जाता है कि साहित्य समाज का दर्पण है। साहित्यकार अपने समाज में जो कुछ भी अच्छाबुरा देखता है उसे अपनी आँख अर्थात् दृष्टिकोण से मंडित और सिंचित करके साहित्य की अलगअलग विधाओं के माध्यम से अभिव्यक्त कर डालता है। उपन्यास, कहानी, कविता, एकांकी, नाटक, संस्मरण, रेखाचित्र, निबंध, रिपोर्ताज आदि विविध विधाओं को अपनाकर साहित्यकार अपनी बात कहता है। इससे न केवल हमारा मनोरंजन होता है अपितु हमारा ज्ञान भी बढ़ता है। हमारे भीतर स्थितियों का सामना करने, समस्याओं का समाधान खोजने और परिवेश के अनुसार आचरण अपनाने की समझ पैदा होती है। संगीत को एक श्रेष्ठ एवं लोकप्रिय कला होने का गौरव प्राप्त है। संगीत मनुष्य के स्नायु-तंत्र पर सकारात्मक प्रभाव डालता है। इससे हम दिनचर्या के बोझ एवं तनाव से मुक्त हो जाते हैं। प्रायः जन्म से ही मनुष्य को संगीत की समझ होती है। बच्चा जब लोरी सुनता है तो उसे संगीत की समझ नहीं होती। वह अबोध, अपठित तथा अज्ञानी होता है। तथापि उसे आनंद आता है। संगीत का मनुष्य तो मनुष्य पशु-पक्षियों पर भी अनुकूल प्रभाव पड़ता है। यही कारण है कि संगीत का दीवाना हिरण शिकारियों द्वारा फैलाए गए संगीत के जाल में फंसकर अपनी जान गँवा बैठता है। जिस प्रकार साहित्य समाज का दर्पण है उसी प्रकार कला उसके विभिन्न प्रकार के व्यवहारों की झाँकी कही जा सकती है। आचार्य विभु ने चौंसठ कलाओं का वर्णन किया है। कला हमारे जीवन को निखारती है। यह भावों को प्रस्फुटित करती है। मनुष्य के सुखी जीवन के लिए साहित्य, संगीत और कला अति महत्त्वपूर्ण हैं। साहित्य से ज्ञानवर्धन होता है और कला तथा संगीत से मनोरंजन होता है। कला और संगीत ईश्वर के अलौकिक आनंद की अनुभूति कराते हैं। साहित्य मनुष्य को सत्मार्ग की प्रेरणा देता है। वह उसके चरित्र का निर्माण कर उत्कर्ष पर ले जाता है। कला और संगीत मिलकर अद्भुत आनंद की अनुभूति कराते हैं। हमारे देश की संस्कृति कला और संगीत में छिपी होती है। साहित्य नए समाज का निर्माण करता है। मनुष्य पर साहित्य का प्रत्यक्ष एवं परोक्ष प्रभाव पड़ता है। उसके सर्वांगीण विकास में साहित्य सहायक होता है। कला में नृत्य, चित्रकला, भवन निर्माण, मूर्ति कला, आदि विधाएँ आती हैं। भारतीय मान्यता है कि जब सरस्वती ने अपने कोमल हाथों में वीणा धारण की तब सामवेद की रचना हुई, और संगीत के सात स्वरों का प्रादुर्भाव हुआ। धीरे-धीरे संगीत की यह परंपरा विदेशों में पहुँच गई और आज हमें संगीत की दो शैलियाँ पाश्चात्य संगीत और भारतीय संगीत के रूप में मिलती हैं। चाहे संगीत किसी भी शैली का क्यों न हो, उसका उद्देश्य मनुष्य को सुख और आनंद प्रदान करना ही होता है। संगीत सुनने व सीखने से मनुष्य को बहुत लाभ होते है। संगीत के अंदर नवजीवन प्रदान करने की अद्भुत क्षमता होती है। जब थका-हारा मनुष्य कुछ समय संगीत का आनंद प्राप्त करता है तो उसकी सारी थकान दूर हो जाती है और वह स्वयं को तरोताजा अनुभव करने लगता है। गीत-संगीत और नृत्य तो प्राचीन काल से ही मनोरंजन के साधन माने गए हैं। आज भी यदि इस व्यस्त जीवन शैली में मनुष्य रोज सैर-सपाटे के लिए नहीं जा सकता है तो वह अपने घर में ही संगीत का आनंद प्राप्त करके मनोरंजन कर सकता है। संगीत प्रेरणा स्रोत भी है। यह व्यक्ति को कार्य करने की प्रेरणा भी देता है। यदि हम काम करते समय संगीत भी सुनने जाते हैं तो वह काम जल्दी भी होता है और काम करने में आनंद का अनुभव होता है। संगीत सुनने से हमारे ज्ञान में वृद्धि भी होती है। संगीत के क्षेत्र के अनेक राग-रागिनियों की जानकारी संगीत को सुनकर ही प्राप्त होती है। गीत, ग़ज़ल आदि को सुनकर समझने से हमारे शब्द भण्डार में भी वृद्धि होती है। अनेक जटिल शब्दों के अर्थ भी हमारी समझ में आते हैं। शारीरिक दृष्टि से भी संगीत का आनंद मनुष्य के लिए लाभदायक होता है। संगीत की लय पर थिरकना एक प्रकार का व्यायाम है इससे शरीर का रक्त संचार बढ़ता है, संगीत की लय, गीतों के बोल याद रखना, उन्हें सटीक गाना इत्यादि क्रियाएँ मस्तिष्क को भी सुदृढ़ बनाती हैं। अतः हमारे जीवन में साहित्य, संगीत और कला का विशेष महत्त्व है क्योंकि ये तीनों हमारे लिए मनोरंजन, ज्ञानवर्द्धन, उदात्तीकरण तथा प्रेरणा के स्रोत हैंl