आज भारत के कुछ शहरों को स्मार्ट बनाने का यह प्रयत्न जोरों पर है। इसकालक्ष्य शहर को स्वच्छ, सन्दर एवं आधुनिक सुविधाओं से युक्त बनाना है।इसके अन्तर्गत कड़े-करकट का प्रबन्धन, जनता शौचालयों का निर्माणबिजली एवं पानी की समुचित व्यवस्था आती है। चौड़ी व समतल सडकोफ्लाई ओवर्स एवं पार्किंग स्थलों के निर्माण से यातायात
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I not understand your question
शहर को स्मार्ट बनाने की सोच लेकर चल रहा सिस्टम कागजों में दौड़ रहा है। शहर में स्मार्टनेस तो दूर स्मार्ट सिटी के एरिया बेस्ड डेवलपमेंट (एबीडी) के दायरे में शामिल वार्डों की तस्वीर भी हकीकत बयां कर रही है। स्मार्ट सिटी चयन के बाद से सफाई व्यवस्था सबसे ज्यादा खराब इन वार्डों में हुई है। स्वच्छता सर्वेक्षण में शहर दो बार पिछड़ता आ रहा है। केंद्र सरकार की नजर में बरेली गंदे शहरों की फेहरिस्त में है। घर-घर कूड़ा कलेक्शन की लचर व्यवस्था, सॉलिड वेस्ट मैनेजमेट प्लांट बंद होने और डलावघरों से कूड़ा समय पर उठान न होने से सारे सिस्टम पर दाग लगा दिया है। बरेलियंस की आवाज यही है कि किस तरह स्मार्ट सिटी से गंदगी का दाग मिटाएंगे, जब डेढ़ साल बाद भी शहर गंदा है। हिन्दुस्तान ने रविवार को आजमनगर, सिकलापुर वार्ड की हकीकत परखी तो सच्चाई सामने आई।
स्मार्ट सिटी बनाने के लिए 1902 करोड़ का बजट से परियोजना बनाने की जिम्मेदारी पीएमसी को मिली थी। स्मार्ट शहर चयन को डेढ़ साल से ज्यादा समय बीत गया लेकिन सिस्टम शहर को स्मार्ट बनाना तो दूर एबीडी में शामिल वार्डों की तस्वीर सुधारने में भी कदम नहीं बढ़ा पाया है। स्मार्ट सिटी एरिया में शामिल वार्डों में सफाई व्यवस्था न होने से गंदगी, सीवर लाइन चोक, घरों में गंदा पानी आपूर्ति, सड़कें टूटी पड़ी। नाली-नालों की सफाई न होने जैसी दिक्कतें लोगों को हो रही हैं। प्लानिंग और सिस्टम से काम होता तो शायद इन वार्डों में स्मार्टनेस दिखाई देती। पब्लिक का भी यही कहना है कि सुधार होता तो शहर स्वच्छता रैकिंग में बेहतर होता।
गुजरात मॉडल का सिर्फ बखान, किया कुछ नहीं
गुजरात में स्मार्ट सिटी चयन से पहले ही शहर स्मार्ट थे। चार सालों से स्वच्छ भारत मिशन चल रहा है लेकिन नगर निगम ने चार सालों में स्वच्छता के नाम पर ढिंढोरा ज्यादा पीटा है। गुजरात के अहमदाबाद व मध्य प्रदेश के इंदौर में कई बार स्मार्ट सिटी व स्वच्छता सर्वेक्षण को लेकर कार्यशाला हो चुकी है लेकिन इस अनुभव लेने के बाद भी शहर से गंदगी नहीं हटा पाए। पहली बार स्वच्छता सर्वेक्षण में 2000 में जीरो अंक तो सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट बंद होने से मिला था। जून के महीने में दूसरी बार आई सर्वेक्षण रिपोर्ट में भी 276 रैंक आई है। पहले से कुछ रैंकिंग में सुधार हुआ जरूर है लेकिन यह रैंकिंग इतनी पीछे है कि टॉप-100 में आने में ही अगले पांच साल लग जाएंगे।
गंदगी की चपेट में वार्ड, ऐसे तो बन चुका स्मार्ट
स्मार्ट सिटी के दायरे में शामिल वार्ड आजम नगर, सिकलापुर फिलहाल गंदगी की चपेट में है। नाली-नाले गंदगी से पटे हुए है। साफ-सफाई न होने से यहां के लोग अक्सर मजबूरी में कूड़ा जलाते हैं। सिकलापुर में भी सड़क किनारे गंदगी है। नाले कूड़े से पटे हुए हैं। रोजाना सफाई व्यवस्था न होने से गलियों में गंदगी है। साफ-सफाई के लिए नगर निगम प्रशासन सुबह-शाम झाड़ू लगवाने का दावा जरूर कर रहा है, लेकिन कूड़े के ढेर, गंदगी से पटे नालों ने इन वार्डों की बदरंग तस्वीर को बयां कर दिया।
बिना जागरूकता के नहीं बनेगा शहर स्मार्ट
शहर को स्मार्ट सिटी बनाने के लिए सिर्फ करोड़ों रुपये खर्च करने से कुछ नहीं होने वाला है। नगर निगम को भी अपनी मंशा साफ करनी होगी। गंदगी करने वालों के जब तक चालान नहीं काटे जाएंगे। तब तक लोग गंदगी करने से बाज नहीं आएंगे। नगर निगम के अफसर रोजाना सफाई व्यवस्था का जायजा लेने का दावा करते हैं और सफाई व्यवस्था पहले से ठीक बताते हैं लेकिन मौके पर स्थिति बद से बदतर है। खाली प्लाट वालों पर जुर्माना लगाना चाहिए।
जो समस्या हैं उन्हें अधिकारियों को बताया जा रहा है। जनता से जुड़ी समस्याओं के बारे में लिखित में शिकायत भी होती है। सफाई व्यवस्था को बेहतर करना जरूरी है।