आज जीत की रात पहरुए सावधान रहना खुले देश के द्वार अनुवाद
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आज जीत की रात ……………………………………………. सावधान रहना।
संदर्भ – प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक मंजरी’ के ‘पहरुए सावधान रहना’ कविता से उद्धृत हैं। इसके रचयिता “गिरिजाकुमार माथुर’ हैं।
प्रसंग – प्रस्तुत कविता में कवि ने स्वतन्त्रता-प्राप्ति के बाद देश के रक्षक और सीमा के पहरेदारों को देश की सुरक्षा और नव-निर्माण के लिए प्रेरित किया है।
व्याख्या – देश के रक्षक पहरेदारो! आज विजय की रति है। देश की सुरक्षा के लिए सतर्क रहो। स्वतन्त्रता-प्राप्ति के कारण देश के बैन्द दरवाजे खुल गए हैं। उसमें तुम अंचल दीपक बनकर प्रकाश करो। यह स्क्तन्त्रता नए स्वर्ग को प्राप्त करने की पहली मंजिल है। जनता के आन्दोलन से यह सुनहरा अवसर रत्न से भरी जल तरंग जैसा है। अभी हमें (UPBoardSolutions.com) जीवन की समृद्धि व देश के नवनिर्माण के लिए बहुत कुछ करना है। फ्राधीनता से देश की हानि की काली छाया पूरी तरह दूर नहीं हुई है। नए युग की नाव फतवार को लेकर तुम समुद्र के समान महान बनकर देश की सावधानी से रक्षा करो।