आज क भ रत संक्रमण क ल क भ रत है। हम न तो भ रतीय ही रह प ए हैंन ववदेशी ही बन प ए। न
हमे ठहंदी आती है, न अंग्रेजी। भ रत, भ रतीयत को त्य गकर पजचचम क अंध नुकरण करने में लग है।
ब ज रीकरण, भूमंडलीकरण ने हम री भ ष , संस्कृनत, स ठहत्य सब कुछ छीन ललय । आज जो बबकत है
वहीं ललि ज त है। वही बोल ज त है, वही ठदि य ज त है। हम1947 ई वी से पहले जीतने पर धीन
थे , आज उससे भी अधधक पर धीन होते ज रहे हैं। पहले एक “ ईस्ट इंडडय कं पनी” हम पर श सन
करती थी। आज अनेक बहुर ष्ट्रीय कंपननय ं अपने इश रों पर न चकर हमेंलूट-िसोट रही है। हम भ रतीय
ि नप न, पहन व , रहन- सहन, सोच, जीवन-मूल्य सब भूलते ज रहे हैं। टीवी तथ इंटरनेट के दव र
अपसंस्कृनत क तीव्र गनत से प्रच र प्रस र हो रह है। संयुक्त पररव र प्रण ली टूट चुकी है। आत्मकेंठित
सम ज,व्यजक्तव दी दृजष्ट्टकोण, एक ंगी-संकुधचत, संकीणि सोच आज के आधुननक लशक्षित भ रती की पहच न
बन चुकी है।
आज क भ रत संक्रमण क ल क भ रत है। हम न तो भ रतीय ही रह प ए हैंन ववदेशी ही बन प ए। न
हमे ठहंदी आती है, न अंग्रेजी। भ रत, भ रतीयत को त्य गकर पजचचम क अंध नुकरण करने में लग है।
ब ज रीकरण, भूमंडलीकरण ने हम री भ ष , संस्कृनत, स ठहत्य सब कुछ छीन ललय । आज जो बबकत है
वहीं ललि ज त है। वही बोल ज त है, वही ठदि य ज त है। हम1947 ई वी से पहले जीतने पर धीन
थे , आज उससे भी अधधक पर धीन होते ज रहे हैं। पहले एक “ ईस्ट इंडडय कं पनी” हम पर श सन
करती थी। आज अनेक बहुर ष्ट्रीय कंपननय ं अपने इश रों पर न चकर हमेंलूट-िसोट रही है। हम भ रतीय
ि नप न, पहन व , रहन- सहन, सोच, जीवन-मूल्य सब भूलते ज रहे हैं। टीवी तथ इंटरनेट के दव र
अपसंस्कृनत क तीव्र गनत से प्रच र प्रस र हो रह है। संयुक्त पररव र प्रण ली टूट चुकी है। आत्मकेंठित
सम ज,व्यजक्तव दी दृजष्ट्टकोण, एक ंगी-संकुधचत, संकीणि सोच आज के आधुननक लशक्षित भ रती की पहच न
बन चुकी है।
A आि हम अपना अिस्तत्ि ककस प्रकार होते िा रहे हैं?
B.आि हम पहिे की अपेक्षा अगधक पराधीन ककस रूप में हो रहे हैं?
C.आि आधुतनक लशक्षक्षत भारतीय की पहचान क्या बन चुकी है?
D.प्रस्तुत गद्यांश का सिाुगधक उपयुक्त शीर्ुक क्या हो सकता है?
E.आि हमें अपने इशारों पर कौन नचा रहा है?
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yesa koe question hi nhi he
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