आज के समय में खाद्य पदार्थों तथा दवाइयों मे हो रही मिलावट मानव जीवन के लिए एक गंभीर समस्या बनती जा रही है। इस संदर्भ में अपने विचार विस्तार पूर्वक लिखिए। (80 to 100 words)
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सामान्यतः बाजार में उपलब्ध खाद्य पदार्थों में मिलावट का संशय बना रहता है। दालें, अनाज, दूध, मसाले, घी से लेकर सब्जी व फल तक कोई भी खाद्य पदार्थ मिलावट से अछूता नहीं है। आज मिलावट का सबसे अधिक कुप्रभाव हमारी रोजमर्रा के जीवन में प्रयोग होने वाली जरूरत की वस्तुओं पर ही पड़ रहा है। शरीर के पोषण के लिए हमें खाद्य पदार्थों की प्रतिदिन आवश्यकता होती है। शरीर को स्वस्थ रखने हेतु प्रोटीन, वसा, कार्बोहाइड्रेट, विटामिन तथा खनिज लवण आदि की पर्याप्त मात्रा को आहार में शामिल करना आवश्यक है तथा ये सभी पोषक तत्व संतुलित आहार से ही प्राप्त किये जा सकते हैं। यह तभी संभव है, जब बाजार में मिलने वाली खाद्य सामग्री, दालें, अनाज, दुग्ध उत्पाद, मसाले, तेल इत्यादि मिलावटरहित हों। खाद्य अपमिश्रण से उत्पाद की गुणवत्ता काफी कम हो जाती है। खाद्य पदार्थों में सस्ते रंजक इत्यादि की। मिलावट करने से उत्पाद तो आकर्षक दिखने लगता है, परंतु पोषकता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, जिससे ये स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होते हैं।
सामान्य रूप से किसी खाद्य पदार्थ में कोई बाहरी तत्व मिला दिया जाए या उसमें से कोई मूल्यवान पोषक तत्व निकाल लिया जाए या भोज्य पदार्थ को अनुचित ढंग से संग्रहीत किया जाए तो उसकी गुणवत्ता में कमी आ जाती है। इसलिए उस खाद्य सामग्री या भोज्य पदार्थ को मिलावटयुक्त कहा जाएगा। भारत सरकार द्वारा खाद्य सामग्री की मिलावट की रोकथाम तथा उपभोक्ताओं को शुद्ध आहार उपलब्ध कराने के लिए सन् 1954 में खाद्य अपमिश्रण अधिनियम (पीएफए एक्ट 1954) लागू किया गया। उपभोक्ताओं के लिए शुद्ध खाद्य पदार्थों की आपूर्ति सुनिश्चित करना स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय की जिम्मेदारी है। इसको ध्यान में रखते हुए उपरोक्त खाद्य अपमिश्रण रोकथाम अधिनियम बनाया गया, जिसके मुख्य उद्देश्य है:
जहरीले एवं हानिकारक खाद्य पदार्थों से जनता की रक्षा करना
घटिया खाद्य पदार्थों की बिक्री की रोकथाम
धोखाधड़ी प्रथा को नष्ट करके उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करना
अपमिश्रित खाद्य पदार्थ तथा स्वास्थ्य पर दुष्प्रभाव
खाद्य अपमिश्रण से मूल खाद्य पदार्थ तथा मिलावटी खाद्य पदार्थ में भेद करना काफी मुश्किल हो जाता है। अपमिश्रित आहार का उपयोग करने से शरीर पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है और शारीरिक विकार उत्पन्न होने की आशंका बढ़ जाती है। खाद्य अपमिश्रण से आखों की रोशनी जाना, हृदय संबन्धित रोग, लीवर खराब होना, कुष्ठ रोग, आहार तंत्र के रोग, पक्षाघात व कैंसर जैसे हो सकते हैं। अनेक स्वार्थी उत्पादक एवं व्यापारी कम समय में अधिक लाभ कमाने के लिए खाद्य सामाग्री में अनेक सस्ते अवयवों की मिलावट करते हैं, जो हमारे शरीर पर दुष्प्रभाव डालते हैं। सामन्यात: दैनिक उपभोग वाले खाद्य पदार्थ जैसे दूध, छाछ, शहद, मसाले, घी, खाद्य तेल, चाय-कॉफी, खोया, आटा आदि में मिलावट की जा सकती है। प्रस्तुत सारणी-2 में खाद्य पदार्थों में संभावित मिलावटी पदार्थ तथा उनसे होने वाले रोग के नाम इंगित हैं।
भोज्य पदार्थों में अपमिश्रण की जांच
व्यावहारिक रूप से खाद्य अपमिश्रण की जांच केन्द्रीय खाद्य प्रयोगशालाओं में की जाती है। खाद्य अपमिश्रण के परीक्षण के लिए मैसूर, पुणे, गाजियाबाद एवं कोलकाता में भारत सरकार द्वारा चार केन्द्रीय प्रयोगशालाएं व्यवस्थित रूप से स्थापित की गई हैं:
केन्द्रीय खाद्य प्रयोगशाला, मैसूर, कर्नाटक- 570013 के अंतर्गत क्षेत्र आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, केरल, तमिलनाडू, लक्षद्वीप व पुडुचेरी
केन्द्रीय खाद्य प्रयोगशाला, पुणे, महाराष्ट्र-400001 के अंतर्गत क्षेत्र गुजरात, मध्य परदेश, दादर तथा नगर हवेली, गोवा, दमन व दियू
केन्द्रीय खाद्य प्रयोगशाला, गाज़ियाबाद-201001, उत्तर प्रदेश के अंतर्गत क्षेत्र हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, जम्मू कश्मीर, पंजाब, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, चंडीगढ़ एवं दिल्ली
केन्द्रीय खाद्य प्रयोगशाला, कोलकाता-700016, पश्चिम बंगाल के अंतर्गत क्षेत्र असोम, बिहार, मेघालय, नागालैंड, ओड़ीशा, त्रिपुरा, अंडमान एवं निकोबार, अरुणाचल प्रदेश व मिज़ोरम।
खाद्य पदार्थों में मिलावट की जांच के लिए इन केन्द्रीय प्रयोगशालाओं के अतिरिक्त राज्य सरकार के खाद्य निरीक्षक, भोज्य पदार्थों के नमूने को सरकारी/ लोक विश्लेषक के पास भेजते हैं। एक गृहणी प्रत्येक खाद्य पदार्थ को परीक्षण केलिए प्रयोगशाला नहीं भेज सकती। अत: यह अवशयक है कि गृहणी को मुख्य खाद्य पदार्थों में कि जाने वाली मिलावट का अनुमान अवशय हो। खदाय अपमिश्रण कि जांच के कुछ सरल व घरेलू परीक्षण, जिनसे कोई भी उपभोक्ता आसानी से शुद्धता कि जांच कर सकता है, का संक्षिप्त विवरण सारणी – 2 में दिया गया है।