आज की दुनिया विचित्र, नवीन;
प्रकृति पर सर्वत्र है विजयी पुरुष आसीन।
है बँधे नर के करों में वारि, विद्युत, भाप,
हुक्म पर चढ़ता-उतरता है पवन का ताप।
हैं नहीं बाकी कहीं व्यवधान
लाँघ सकता नर सरित् गिरि सिन्धु एक समान।
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मानव और प्रकृति
Explanation:
मानव और प्रकृति के बीच बहुत गहरा सम्बन्ध है। दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं।प्रकृति की इसी महत्ता को प्रतिस्थापित करते हुए पद्मपुराण का कथन है कि जो मनुष्य सड़क के किनारे तथा जलाशयों के तट पर वृक्ष लगाता है, वह स्वर्ग में उतने ही वर्षों तक फलता-फूलता है, जितने वर्षों तक वह वृक्ष फलता-फूलता है।हम मानव अपने जीवन यापन के लिए पूरी तरह प्रकृति पर ही निर्भर हैं।और हम चाहे कितने ही शक्तिशाली क्यों ना हो जाएं लेकिन
प्रकृति और ईश्वर एक है।हम उनसे बढ़कर नहीं हैं और ये बात हमें नहीं भूलनी चाहिए।
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