* आज की व्यस्त दिनचर्या में सयुक्त परिवारों की घटते महत्व के बारे में अपने विचार ए4
आइज शीट पर लिखिए । अनुकमांक 26-50
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परिवार व्यक्तियों का वह समूह होता है, जो विवाह और रक्त सम्बन्धों से जुड़ा होता है जिसमें बच्चों का पालन पोषण होता है । परिवार एक स्थायी और सार्वभौमिक संस्था है। किन्तु इसका स्वरूप अलग अलग स्थानों पर भिन्न हो सकता है । पश्चिमी देशों में अधिकांश नाभिकीय परिवार पाये जाते हैं । नाभिकीय परिवार वे परिवार होते हैं जिनमें माता-पिता और उनके बच्चे रहते हैं । इन्हें एकाकी परिवार भी कहते हैं। जबकि भारत जैसे देश में सयुंक्त और विस्तृत परिवार की प्रधानता होती है । संयुक्त परिवार वह परिवार है जिसमें माता पिता और बच्चों के साथ दादा दादी भी रहतें हैं । यदि इनके साथ चाचा चाची ताऊ या अन्य सदस्य भी रहते हैं तो इसे विस्तृत परिवार कहते हैं । वर्तमान में ऐसे परिवार बहुत कम देखने को मिलते हैं । व्यापरी वर्ग में विस्तृत परिवार अभी भी मिलते हैं । क्योंकि उन्हें व्यापार के लिये मानव शक्ति की आवश्यकता होती है ।
परिवार के बिना समाज की कल्पना नहीं की जा सकती । आगस्त कॉम्टे कहते हैं कि परिवार समाज की आधारभूत इकाई है । एक अच्छा परिवार समाज के लिये वरदान और एक बुरा परिवार समाज के लिये अभिशाप होता है । क्योंकि समाज में परिवार की भूमिका प्रदायक की होती है। परिवार सदस्यों का समाजीकरण करता है, साथ ही सामाजिक नियंत्रण का कार्य करता है क्योंकि सभी नातेदार सम्बन्धों की मर्यादा से बंधे होते हैं । एक अच्छे परिवार में अनुशासन और आजादी दोनों होती हैं ।
परिवार मनुष्य के जीवन का बुनियादी पहलू है। व्यक्ति का निर्माण और विकास परिवार में ही होता है । परिवार मनुष्य को मनोवैज्ञानिक सुरक्षा प्रदान करता है । व्यक्तित्व का विकास करता है । प्रेम,स्नेह, सहानुभूति , परानुभुति आदर सम्मान जैसी भावनाऐं सिखाता है । धार्मिक क्रियाकलाप सिखाता है। धर्म स्वयं में नैतिक है । अतः बच्चा नैतिकता सीख जाता है। बच्चों में संस्कार परिवार से ही आते हैं । इसलिये ही प्लेटो कहते हैं कि परिवार मनुष्य की प्रथम पाठशाला है ।
इस तरह परिवार का समाज में विशेष महत्त्व है किन्तु इससे भी अधिक महत्त्व भारतीय समाज में सयुंक्त परिवार का रहा है । संयुक्त परिवार में प्रत्येक व्यक्ति की जिम्मेदरी होती है । स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्या हो या आर्थिक सामाजिक सुरक्षा , सभी लोग मिलकर वहन करते हैं । कोई अकेला व्यक्ति परेशानी नहीं उठाता । इससे किसी एक व्यक्ति पर तनाव नहीं बढ़ता । पूरा परिवार एक शक्ति ग्रह की भांति होता है । जो सामाजिक सुरक्षा का कार्य करता है । संगठित होकर रहने से मौहल्ले में भी झगड़े कम होते हैं । संयुक्त परिवार में बच्चे कैसे बड़े हो जातें है पता ही नहीं चलता । बच्चों के खेलने के लिये परिवार के सदस्य ही उनके दोस्त बन जाते हैं । मनोरंजक गतिविधियां जैसे त्यौहार उत्सव आदि होते रहते हैं । उन्हें दादा दादी आदि का अपार प्यार मिलता है । इसलिये परिवार को प्यार का मंदिर कहा जाता है । प्यार के साथ साथ उनका ज्ञान अनुभव अनुसाशन आदि बहुत कुछ बच्चों को मिलता है । ऐसे में बच्चों का उचित शारीरिक और चारित्रिक विकास होता है । जबकि एकाकी परिवार में कभी कभी बच्चे को माँ बाप का प्यार भी नहीं मिल पाता । बच्चों को संस्कारवान बनाने , चरित्रवान बनाने एवं उनके नैतिक विकास में संयुक्त परिवार का विशेष योगदान होता है जोकि एकाकी परिवार में कभी संभव नहीं है।
संयुक्त परिवार में कौशल भी सिखाया जाता है । साम्य श्रम विभाजन देखा जा सकता है ।कार्य लिंग और आयु के आधार पर बँटा होता है । परिवार एक नियामक संस्था भी है । जो घर में सभी सदस्यों को अनुशासित और नियंत्रित रखती है । इसे तनाशाही भी कहते हैं । घर का एक मुखिया होता है जो चुना नहीं जाता किन्तु वह परिवार का वरिष्ठतम सदस्य होता है । वही नियामक होता है । किन्तु मुखिया का कार्य बहुत कठिन होता है । क्योंकि वही पूरे परिवार को एक सूत्र में बाँधे रखता है । जरूरत पड़ने पर उचित दंड भी देता है । बदले में अक्सर उसे बुराइयाँ भी मिलती है । इसलिये कहा जाता है कि परिवार का मुखिया होना कांटों भरा ताज पहनने जैसा है । मजूमदार परिवार को लघु राज्य कहते हैं । मनु स्मृति में भी पिता को राजा और माता को रानी बताया गया है ।
संयुक्त परिवार में झगड़ों की प्रकृति सामान्य और आपसी होती थी। जिनको बुजुर्ग लोग घर में ही सुलझा लेतें थे । क्योंकि संयुक्त परिवार स्वयं में नियामक था । लेकिन आज झगड़े व्यक्ति होते जा रहे हैं । एकाकी परिवार में पति पत्नी के झगड़े बढते ही जा रहे रहें है । एकाकी परिवार में समाधान के लिये कोई बुजुर्ग नहीं होता इसलिये झगड़े घर से बाहर निकल रहे हैं । पारिवारिक विवादों को निपटाने के लिये विभिन्न सतर पर परामर्श केंद्र बनाये गये है ।बाबजूद इसके पारिवारिक झगड़े बढ़ते ही जा रहे हैं । इसके अनेक कारण हो सकते हैं जैसे -अहंकार , बढ़ता सुखवाद , बिना कर्तव्य के अधिकार, नारी सशक्तिकरण , समय और आपसी संचार की कमी