Hindi, asked by jhaanupam62, 7 hours ago

आज सवेरे और प्रकृति के बीच जब वसंत आया उपवन में चुपके-चुपके कानों-ही-कानों मैंने उससे पूछा, "मित्र, पा गए तुम तो अपने यौवन का उल्लास दुबारा गमक उठे फिर प्राण तुम्हारे फूलों-सा मन फिर मुसकाया, पर साथी ! क्या दोगे मुझको ? मेरा यौवन मुझे दोबारा न मिल सकेगा ?" सरसों की उँगलियाँ हिलाकर संकेतों में वह यों बोला : "मेरे भाई ! व्यर्थ प्रकृति के नियमों की यों दो न दुहाई, होड़ न बाँधो तुम यों मुझसे ! जब मेरे जीवन का पहला पहर झुलसता था लपटों में, तुम बैठे थे बंद उशीर पटों से घिरकर । मैं जब वर्षा की बाढ़ों में डूब-डूब कर उतराया था, तुम हँसते थे वाटर-प्रूफ़ कवच को ओढ़े । और शीत के पाले में जब गलकर मेरी देह जम गई। तब बिजली के हीटर से तुम सेंक रहे थे अपना तन-मन ! जिसने झेला नहीं, खेल क्या उसने खेला? जो कष्टों से भागा, दूर हो गया सहज जीवन के क्रम से उसको दे क्या दान प्रकृति की यह गतिमयता यह नव बेला । पीड़ा के माथे पर ही आनंद तिलक चढ़ता आया है। मुझे देखकर आज तुम्हारा मन यदि सचमुच ललचाया तो कृत्रिम दीवारें तोड़ो, बाहर आओ, खुलो, तपो, भीगो, गल जाओ, आँधी तूफ़ानों को सिर पर लेना सीखो जीवन का हर दर्द सहेजो, स्वीकारो हर चोट समय की, जितनी भी हलचल मचनी हो, मच जाने दो, रस-विष दोनों को गहरे में पच जाने दो। तभी तुम्हें भी धरती का आशीष मिलेगा, तभी तुम्हारे प्राणों में भी यह पलाश का फूल खिलेगा.
i)कौन किसे कृत्रिम दीवारें तोड़ने के लिए कह रहा था
ii)'आँधी तूफानों को सिर पर लेना सीखें पंकित काभाव स्पष्ट करो।
class-8 पाठ - उपवन​

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Answered by ThippeswamyH
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