आजादी की नींद ka sarans
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Explanation:
भुवनेश्वर के एकांकियों की सबसे बड़ी विशेषता सामाजिक यथार्थवाद है। प्रस्तुत एकांकी (Play - छोटा नाटक) में भारत की आज़ादी के पूर्व संध्या की एकांकी का मुख्य विषय बनाया गया है। इस एकांकी में ईमानदार बातून, एक पेशेवर नेता तथा एक कवि के पारस्परिक विचारों के माध्यम से यह दिखलाने का प्रयास किया गया है कि आजादी की जो नींद हमें सन् 1947 में नसीब हुई थी हम आज भी उस नींद से जाग नहीं पाए है। आज भी आज़ादी के इतने वर्षों बाद भी हम आजादी की खुमारी में ही जी रहे है।
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आजादी की नींद का सारांश :
- आजादी की नींद एक एकांकी है जो भुवनेश्वर द्वारा लिखित है।
- भुवनेश्वर की लिखी एकांकियों में सबसे बड़ी विशेषता यह होती है कि उनमें सामाजिक यथार्थ होता है।
- आजादी की नींद एकांकी में आजादी से पूर्व संध्या को विषय बनाया है। इसमें एक ईमानदार बातून , एक कवि व एक पेशेवर नेता के विचारो से लेखक ने यह दिखाने का प्रयत्न किया है कि आजादी कि नींद जो हमें सन् 1947 में नसीब हुई थी, हम आज भी उससे जाग नहीं पाए है।
- आजादी के इतने वर्षों बाद भी हम पर आजादी कि खुमारी का प्रभाव है।
- लेखक यह कहना चाहता है कि आजादी से पहले के लोग आज भी याद करते है कि उन दिनों भले ही गुलामी थी परन्तु प्रत्येक उपयोगी वस्तु सस्ती व सुलभ थी। गरीब से गरीब व्यक्ति भी जी लेता था परन्तु आज ऐसा कुछ भी नहीं है । महंगाई की मार तो है ही साथ में नेताओ व पुलिस की मनमानी व न्याय व्यवस्था की मार भी सहनी पड़ रही है, यह कैसी आजादी है ?
#SPJ3
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