आक्रोश में आकर मजदूर ने क्या किया
Answers
Answer:
प्रश्न 1.
आसमान में किस तरह के बादल उड़ रहे थे?
उत्तर:
आसमान में झीने-झीने, कजरारे एवं चंचल बादल उड़ रहे थे।
प्रश्न 2.
रिमझिम-रिमझिम पानी बरसने के बाद क्या हुआ?
उत्तर:
रिमझिम-रिमझिम पानी बरसने के बाद आकाश खुल गया और धूप-निकल आयी।
प्रश्न 3.
कवि के अनुसार हवा बार-बार क्या कर रही है?
उत्तर:
कवि के अनुसार हवा बार-बार उनकी पत्नी का आँचल खींच रही है।
प्रश्न 4.
कवि ने नई सभ्यता का स्वरूप कैसा बतलाया
उत्तर:
कवि ने नई सभ्यता का स्वरूप इस प्रकार बतलाया है कि पूर्व में तो हमारी कुटियों में तूफान बिना पूछे ही घुस जाया करते थे, लेकिन नई सभ्यता में वे बिना दरवाजे खटखटाए ही घरों में चले आते हैं।
प्रश्न 5.
आक्रोश में आकर मजदूरों ने क्या किया?
उत्त
बादलों के लिए
नयी सभ्यता
निर्धनता एवं भुखमरी
सूरज को निगल लिया।
चाँदनी चमकती है गंगा बहती जाती है भाव सारांश
‘चाँदनी चमकती है गंगा बहती जाती है’ कविता में त्रिलोचन कवि ने गंगा नदी के किनारे चाँदनी रात का वर्णन किया है।
कवि का कथन है कि गंगा नदी के किनारे चाँदनी रात का वातावरण अत्यन्त सुन्दर दिखाई देता है। इस समय आकाश में काले-काले बादल काजल की भाँति इधर-उधर घूम रहे हैं। बादलों में छिपते और चमकते तारे शोभा को बढ़ा रहे हैं। चाँदनी रात्रि में गंगा की लहरें तरंगित होती हुई सुशोभित हो रही हैं।
शरद काल का समय है और नवमी तिथि की मनोहर रात है। शीतल ठंडी रात मन में रोमांच का अनुभव कराती है। शीत ऋतु यद्यपि अभी नहीं है,किन्तु शरदकालीन शीतलता से तन के रोंये कम्पन कर रहे हैं अर्थात् शरीर रोमांचित हो रहा है।
रात में आसमान स्वच्छ था लेकिन यकायक वर्षा होने लगी है। इसके बाद आकाश स्वच्छ हो गया और पुनः धूप खिल उठी। देखते-देखते बादल इकट्ठे हो गये हैं। कवि अपनी पत्नी से कहता है कि यह हवा बार-बार तुम्हारा आँचल इस प्रकार खींच रही है जैसे तुम्हारा देवर बचपन में आँचल खींचता और हठ करता था।
कवि पत्नी से कहता है कि खेतों की ओर चलो और देखो हम दोनों ने जो बीज बोये थे वे अब अंकुरित तथा बड़े होकर वायु वेग से लहलहा रहे हैं। वास्तव में खेतों की हरियाली के कारण गंगा तट का सौन्दर्य दुगना हो गया है।
चाँदनी चमकती है गंगा बहती जाती है संदर्भ-प्रसंगसहित व्याख्या
(1) चल रही हवा
धीरे-धीरे
सीरी-सीरी;
उड़ रहे गगन में
झीने-झीने
कजरारे
चंचल बादल!
छिपते-छिपते
जब-तब
तारे,
उज्ज्वल, झलमल
चाँदनी चमकती है गंगा बहती जाती है।
शब्दार्थ :
सीरी-सीरी= ठण्डी-ठण्डी। गगन = आकाश। झीने-झीने = पतले-पतले। कजरारे = काले।
सन्दर्भ :
प्रस्तुत कविता ‘चाँदनी चमकती है गंगा बहती जाती है’ शीर्षक से ली गयी है। इसके कवि श्री त्रिलोचन हैं।
प्रसंग :
इस कविता में कवि ने प्रकृति के मादक रूप का वर्णन किया है।