आकाश का साफा बांधकर कौन बैठा था और वह क्या कर रहा था?
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प्रस्तुत पक्तियों में कवि ने विभिन्न रूपकों का परिचय देते हुए प्राकृतिक उपादानों का वर्णन किया है। कवि को पहाड़ किसी किसान की तरह लगता है, जो की आकाश का साफा बांधकर बैठा है। वह सूरज को चिलम की तरह पी रहा है। पर्वत रूपी चादर किसान के घुटनों के पास नदी चादर सी बह रही है।
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