आकाशदीप कहानी की समीक्षा। Akashdeep Kahani ki Samiksha
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आकाशदीप कहानी छायावादी कवि एवं आधुनिक कहानीकार जयशंकर प्रसाद की सर्वाधिक चर्चित कहानी रही है। इसमें कहानीकार ने बड़ी ही सजगता के साथ इतिहास और कल्पना का सुन्दर सामंजस्य बिठाया है। प्रेम और कर्तव्य के अन्तद्र्वन्द्व को लेकर लिखी गयी यह कहानी कर्तव्य-भावना का समर्थन करती है।
साहित्य-समीक्षकों द्वारा कहानी-कला के निर्धारित तत्वों कथानक, पात्र एवं उनका चरित्र-चित्रण, देशकाल और वातावरण, कथोपकथन, उद्देश्य एवं भाषा-शैली के आधार पर आकाशदीप कहानी की समीक्षा इस प्रकार की जा सकती है-
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1. कथानक - आकाशदीप कहानी का कथानक निरंतर गतिशील बना रहता है। पाठक के मन में रह-रह कर जिज्ञासा एवं कौतूहल की भावना पनपती रहती है। बन्दी-वार्तालाप के साथ प्रारम्भ हुआ कहानी का कथानक मुक्त होने पर चम्पा और जलदस्यु बुद्धगुप्त के प्रेमालाप में बदल जाता है। पहले तो चम्पा के मन में उसके प्रति घृणा रहती है क्योंकि वह बुद्धगुप्त को अपने पिता का हत्यारा मानती है। परन्तु बुद्धगुप्त द्वारा मणिभद्र का षडयंत्र विफल किये जाने की बात सुनकर उसके भीतर बुद्धगुप्त के प्रति घृणा के साथ-साथ प्रेम की भावना उत्पन्न हो जाती है।यहाँ भी उनका विवेक और चातुर्य दोनों के सम्बन्धों को मधुर बनाने में सहायक होता है।
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बुद्धगुप्त चम्पा से परिणय करना चाहता है। वह स्तंभ पर दीप जलाती है। समुद्र-जल में चमकती दीपों की रोशनी में वह खो जाती है तो अचानक बुद्धगुप्त आकर चम्पा से दीपों के प्रति आकर्षण का कारण जानना चाहता है तो वह बताती है कि ये दीपक किसी के आगमन की आशा लिए रहते है। जब मेरे पिता भी समुद्र में जाया करते थे, तो नित्य शाम को मेरी माँ भी दीप जला कर टाँगा करती थी। द्वीप के निवासियों के सम्मुख चम्पा और बुद्धगुप्त का विवाह हो जाता है। बुद्धगुप्त चम्पा से भारत लौटने को कहता है, तो वह कह देती है कि तुम वहाँ जाकर सुख भोगो, मैं तो इन्ही द्वीपवासियों की सेवा में अपना जीवन लगाना चाहती हूँ। चम्पा कर्तव्य के सामने प्रेम का बलिदान कर देती है। इस तरह आकाशदीप कहानी की कथावस्तु काल्पनिकता का सहारा लिए हुए है, फिर भी उसमें जिस प्रकार हृदय-परिवर्तन दिखाया गया है, वह निश्चित ही सफल कहानी की ओर संकेत करता है।