यदि मैं अध्यापक होता पर निबंध। Yadi mein Adhyapak hota
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रात्रि को सोने से पूर्व मैं किसी धार्मिक पुस्तक का अध्ययन अवश्य करता हूं। इससे नींद में बुरे विचार और खराब सपने नहीं आते। आज महर्षि अरविंद के विचार नामक पुस्तक पढ़ रहा था। उन्होंने अध्यापक के संबंध में लिखा है अध्यापक राष्ट्र की संस्कृति के चतुर माली होते हैं। वे संस्कारों की जड़ों में खाद देते हैं और अपने श्रम से उन्हें सींच कर महाप्राण शक्तियां बनाते हैं।
महर्षि अरविंद के इन विचारों को पढ़कर उपर्युक्त अंग्रेजी अध्यापक की महत्ता साबित हो गई। अपने स्वार्थवश छात्रों को अनुतीर्ण कर हतोत्साहित करना और फिर ट्यूशन के लिए प्रेरित करना वर्तमान अध्यापकों के जीवन की भूमिका है। इसी क्रम में अनेक विचार मन में उठते रहे और इसी अंतर्द्वंद में एक विचार भी हृदय में जागृत हुआ कि मैं अध्यापक बनूंगा। कितनी अच्छी कल्पना है। यदि मैं अध्यापक होता तो अंग्रेजी अध्यापक के समान धन लोभ के कारण छात्रों से अनुचित व्यवहार ना करता। अर्धवार्षिक परीक्षा में छात्रों को असफल कर ट्यूशन रखने का अर्थ अपने कर्तव्य की अवहेलना है। यदि मैं अध्यापक होता तो मैं अपने कर्तव्य के प्रति हमेशा जागरुक रहता।
अंग्रेजी विदेशी भाषा है। इसको पढ़ाने के लिए मैं अत्यंत सावधानी और परिश्रम से काम लेता। पाठ पढ़ाते हुए पहले पाठ के एक अनुच्छेद कक्षा में दो से तीन बार उच्चारण करवाता। फिर उस अनुच्छेद का आशय छात्रों को समझाता। एक-एक वाक्य का अर्थ करते हुए अनुच्छेद की पूर्णता मेरी पद्धति नहीं होती बल्कि एक शब्द को लेता एक-एक शब्द का अर्थ विद्यार्थियों से पूछता। जो उन्हें नहीं आता वह बताता और आदेश देता कि वे अपनी कॉपी पर साथ-साथ लिखते चले। एक एक शब्द के पश्चात वाक्य का शब्दार्थ करते हुए किया भावपूर्ण अर्थ बताता। जो छात्र कॉपी में लिखना चाहते हैं उन्हें लिखने का अवसर देता। एक अनुच्छेद में यदि एक बार एक शब्द आता तो मैं यथास्थान बार-बार उसका अर्थ दोहराता। अनुच्छेद समाप्ति पर उसमें आए वचन, लिंग तथा क्रिया संबंधी रूपों को स्पष्ट करता हुआ डायरेक्ट इनडायरेक्ट भी समझाता।
यदि मैं एक अध्यापिका होती तो बच्चों को शिक्षा देना अपना फर्ज समझती या यूं कहें कि अपना लक्ष्य समझती है ना कि पैसा कमाने का एक जरिया। हमें कभी भी अपने छात्रों को ऐसा महसूस नहीं होने देना चाहिए कि हम एक अध्यापक हैं बल्कि हमें छात्रों के साथ इस तरह का व्यवहार रखना चाहिए ताकि उन्हें लगे कि हम उनके परिवार के एक सदस्य में से ही कोई व्यक्ति हैं जो कि उन्हें प्रति दिन शिक्षा देते हैं।
मैं हर दिन कुछ नया पढ़कर जाती और फिर विद्यालय में जाकर उसे अपने छात्रों के बीच सुनाती और उनसे इस चीज के शिक्षा के बारे में पूछती और यह जानती कि उनके दिमाग में क्या चलता है या फिर यूं कहें कि वह अपनी सोच किस तरह की रखते हैं हर दिन नई कहानियां पढ़ना और बच्चों को सुनाना मानो उन्हें एक अलग तरह की शिक्षा देना ही समझती। तथा उन्हें पढ़ाने से पहले अर्थात किताबी ज्ञान देने से पहले मैं उन्हें हर रोज कुछ ना कुछ चीजों के बारे में बताती और उनसे भी कहती कि वह भी पढ़ कर आए और मैं फिर दूसरे दिन उनसे कुछ पूछती और खुद भी शिक्षा ग्रहण करती तथा उन्हें बताकर उन्हें भी कुछ शिक्षा देती। शिक्षक का मतलब यह नहीं होता है कि सिर्फ शिक्षक ही अपने छात्र को कुछ सिखाएं या कुछ नया बताएं, बल्कि छात्र भी कुछ अपने शिक्षक को शिक्षा दे सकते हैं हमें यह कभी नहीं समझना चाहिए कि बच्चों से हमें कुछ शिक्षा प्राप्त नहीं होती है बल्कि बच्चे से हमें उनके मन के बारे में जानकर हमें और भी कुछ नया जानने को मिलता है जो कि उनके लिए भी बहुत ही रोचक होता और हमारे लिए भी बहुत ही रोचक होता।