आलस्यं हि मनुष्याणां शरीरसथ: + महान् रिपु:|
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आलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपुः | नास्त्युद्यमसमो बन्धुः कृत्वा यं नावसीदति, क्या आप इस प्रसिद्ध संस्कृत श्लोक का भावार्थ समझा सकते हैं ? ... अर्थात् : मनुष्यों के शरीर में रहने वाला आलस्य ही ( उनका ) सबसे बड़ा शत्रु होता है | परिश्रम जैसा दूसरा (हमारा ) कोई अन्य मित्र नहीं है.
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