आन का मान नाटक के प्रथम अंक का सारांश लिखिए
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आन का मान नाटक के प्रथम अंक का सारांश लिखिए ?
साहित्यकार हरि कृष्ण प्रेमी द्वारा रचित नाटक आन का मान मुगल कालीन भारत के इतिहास पर आधारित है जिसमें राजपूत सरदार दुर्गादास की स्वाभाविक वीरता को चित्रित कर उसके व्यक्तित्व की महानता दर्शाई गई है इस नाटक के माध्यम से नाटककार ने मानवीय गुणों को रेखांकित किया है तथा हिंदू मुस्लिम एकता यानी सांप्रदायिक सौहार्द के संदेश को प्रसारित करने की सफल कोशिश की है
श्री हरिकृष्ण ‘ प्रेमी ' द्वारा रचित नाटक ‘ आन का मान ’ का आरम्भ रेगिस्तान के एक रेतीले मैदान से होता है । इस समय भारत की राजनीतिक सत्ता मुख्यतः मुगल शासक औरंगजेब के हाथों में थी और जोधपुर में महाराज जसवन्त सिंह का राज्य था । वीर दुर्गादास राठौर महाराज जसवन्त सिंह का ही कर्तव्यनिष्ठ सेवक है और महाराज की मृत्यु हो जाने के बाद वह उनके अवयस्क पुत्र अजीत सिंह के संरक्षक की भूमिका निभाता है । अपने पिता औरंगजेब की अनेक नीतियों का विरोध करते हुए उसका पुत्र अकबर द्वितीय औरंगजेब से अलग हो जाता है । और उसकी मित्रता दुर्गादास राठौर से हो जाती है ।
औरंगजेब की एक चाल से अकबर द्वितीय को ईरान चले जाना पड़ा । अपनी मित्रता निभाते हुए अकबर द्वितीय की सन्तानो – सफीयत एवं बुलन्द अख्तर के पालन - पोषण का दायित्व दुर्गादास ने अपने ऊपर ले लिया । समय के साथ - साथ सभी युवा होते हैं और राजकुमार अजीत सिंह सफीयतुन्निसा पर आसक्त हो जाता है । सफीयत के टालने के बावजूद भी अजीत सिंह में उसके प्रति प्रेम की भावना अत्यधिक बढ़ जाती है , जिसके कारण दुर्गादास नाराज हो जाते हैं । दुर्गादास द्वारा राजपूती आन एवं मान का ध्यान दिलाने पर अजीत सिंह अपनी गलती मानकर क्षमा माँग लेता है ।
युद्ध की तैयारी प्रारम्भ होती है । औरंगजेब के सन्धि प्रस्ताव को लेकर ईश्वरदास आता है । मुगल सूबेदार शुजाअत खों द्वारा सादे वेश में प्रवेश करने के बावजूद अजीत सिंह उस पर प्रहार करता है । परन्त राजपूती परम्परा का निर्वाह करते हुए नि : शस्त्र व्यक्ति पर प्रहार होने से दुर्गादास बचा लेता है ।
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