आनंद भवन, स्टेशन रोड़, बनारस - 221 001 से कल्याणी, अपनी सखी अनुराधा को दहेज-प्रथा की बुराईयाँ समझाते
हुए पत्र लिखती है।
Answers
Explanation:
अंजू परमार,
236, बापू नगर,
जयपुर।
27-02-2003
सेवा में,
संपादक महोदय,
राजस्थान पत्रिका,
जयपुर।
विषय-दहेज-प्रथा
महोदय,
आपके लोकप्रिय समाचार-पत्र के माध्यम से मैं अपने विचार जनता तक पहुँचाना चाहती हूँ। आप इन्हें 'जनता की आवाज़' नामक शीर्षक में प्रकाशित करने की कृपा करें।
लगभग गत पच्चीस वर्षों से दहेज की बुराई का सरकार द्वारा प्रचार किया जा रहा है। दहेज-प्रथा पर अनेक फिल्मों का निर्माण हुआ है। सैकड़ों साहित्यकारों ने कविताएँ, कहानियाँ, नाटक, एकांकी तथा लेख लिखे हैं। छात्रों ने भाषण दिए हैं। अध्यापकों ने निबंध लिखवाए हैं। अनेक सामाजिक संस्थाओं ने दहेज-प्रथा के विरुद्ध आवाज उठाई है। युवकों ने दहेज न लेने की कसमें भी खाईं। सरकार द्वारा नियम-कानून बनाए गए किंतु जितनी दवा की फिर भी बीमारी बढ़ती रही। दहेज़ पीड़ित नारियों की आवाज़ को बुलंद किया गया।
दहेज-प्रथा को जितना दबाने का प्रयास किया गया उतना ही यह समाज में प्रचलित हो गई। एक आम मध्यम वर्ग का आदमी भी अपने बेटे के विवाह में सोना, टी.वी., कार, बंगला माँगने लगा है। चतुर माता-पिता तो विवाह से पूर्व ही दहेज लेकर आदर्श विवाह का दिखावा करते हैं। गरीब घर की कन्या से विवाह के लिए सामान्य रूप से कोई तैयार नहीं होता। अमीरों की कम शिक्षित और कम सुंदर कन्याओं का विवाह दहेज के दम पर अच्छे वरों के साथ कर दिया जाता है। दहेज-प्रथा को समाप्त करने के लिए प्रेम-विवाह और आपसी सहमति पर आधारित विवाहों को प्रोत्साहन मिलना चाहिए। लेन-देन के व्यवसाय में बड़े-बूढ़े ही शामिल रहते हैं। विवाह तो युवाओं की पसंद और चाहत के आधार पर होना चाहिए। विवाह का निर्णय युवकों को स्वयं करना चाहिए।
धन्यवाद।
भवदीया
अंजू परमार
Answer:
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