आनंद की पाठशाला कितने बजे लगती थी
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आनंदा की पाठशाला ग्यारह बजे लगती थी।
जूझ पाठ लेखक आनंदा बचपन की आत्मकथा है, जिसने लेखक ने पढ़ाई के लिए अपने बचपन के संघर्ष का वर्णन किया है।
व्याख्या :
लेखक यानी आनंदा के पिता लेखक को पढ़ाना नहीं चाहते थे क्योंकि वह उसे खेत पर काम करने को कहते थे। बाद में वे लेखक के पाठशाला जाने को मान गए, लेकिन पाठशाला ग्यारह बजे लगती थी। लेखक दिल निकलते ही अपने खेत पर हाजिर होने के बाद खेत से सीधे पाठशाला जाता था। पाठशाला की छुट्टी होते ही वापस खेत में आ जाता था। कभी-कभी उसे खेत में काम अधिक होने पर पाठशाला से गैरहाजिर भी होना पड़ता था।
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