Hindi, asked by Adeti, 1 year ago

Aap ke parivesh mai gramin Sanskriti or aadhunik Sanskriti ka mahatva!!

Answers

Answered by Alhamdulillah786
1

पवित्रता से व्यापार की ओर- श्री जयदत पंत के शब्दों में ‘हमारे तीर्थ अब पवित्रता के अर्थ को खोकर पर्यटन व्यवसाय के लिए आकर्षण का केन्द्र कहे जाने लगे। सभ्यता और कला के उत्कर्ष की प्रतीक हमारी मूर्तियाँ आदि तस्करी की शिकार हो गई, जिनके आगे हमारी पिछली पीढ़ी तक के कोटिश लाग धूप जलाकर माथा नवाते थे, वे विदेशों में करोड़पतियों के उद्यानों और उनके निजी संग्रहालयों की शोभा बन गई। हमारे देवी-देवताओं की कीमत लगाई गई और हमने उनको रात के अन्धेरे में बेच दिया।

कृत्रिमता- आधुनिक, संस्कृति के मूलाधार सौन्दर्य और प्रेम ने जीवन के हर क्षेत्र में सौन्दर्य के दर्शन किए। आधुनिक संस्कृति में अभिश्प्त मानव को सावन के गधे की तरह हरा-हरा ही दिख रहा है। यह देख कवि महाकवि प्रसाद की आत्मा चीख उठी, ‘नर के बांटे क्या नारी की नग्न मूर्ति ही आई।’

वैयक्तिक- आधुनिक संस्कृति अहम् और निजी जीवन को महत्व देती है। अतः सर्वत्र अहम् का बोल बाला है। विद्यार्थी विद्रोह पर उतारू हैं, कर्मचारी हड़ताल पर आमदा हैं और अहम् में डूबी सत्ता आतंक फैला रही है। दूसरी ओर निजी जीवन में पारिवारिक एकता नष्ट हो रही है। बहू को परिवार इसलिए बुरा लगता है कि सामूहिक परिवार की समझौता भावना में उसके अहं को ठेस पहुँचती है।

संग्रह-प्रवृति का विकास- धन और सम्पत्ति की संग्रह प्रवृत्ति आधुनिक संस्कृति का अंग है, जो भारतीय संस्कृति के त्याग को दुत्कारती है। विभिन्न पदार्थों में मिलावट करके तिजोरियां भरो, तस्करी करके अपनी अगली पीढ़ी को भी धनाढ्य बनाया, कानून के प्रहरियों को रिश्वत की मार से क्रीतदास बनाया। विधि बेत्ताओं की सहायता से कानून का पोस्टमार्टम कर अपने पक्ष में निर्णय पलटवाए।

भारतीय जीवन पर गहरा प्रभाव- आधुनिक संस्कृति का भारतीय जीवन संस्कारों पर प्रभाव नकारा नहीं जा सकता। आज हम बच्चों का जन्मदिन मोमबत्ती बुझाकर मानते हैं, विवाह-संस्कारों के सर्वाधिक महत्वपूर्ण अंग ‘पूजा-पाठ’ को शीघ्रतम निपटाना चाहते हैं, सप्त-नदी और प्रतिज्ञाओं का मजाक उड़ाते हैं, विवाह मुकुट का स्थान टोपी ने ले लिया है। मृतक के तेरह दिन शास्त्रीय विधि विधान से कौन पूरे करता है।

प्रयास की आश्वयकता- प्राचीनता को आधुनिक संस्कृति में परिवर्तित करने का प्रयास अबाधि गति से चल रहा है। आयुर्वेदिक चिकित्सक एल्योपैथिक पद्धति से रोग दूर करते हैं। पूजा-अर्चना में धूप-दीप के स्थान पर बिजली के बल्ब जलते हैं।

उपभोक्ता संस्कृति की ओर- आधुनिकता घर-घर में घुस गई। पाजामा-धोती नाइट सूट बन गये। पैंट बुशर्ट और टाई परिधान बने। जूते पहनकर मेज कुर्सी पर भोजन करने लगे। माता का चरण स्पर्श माँ के चुम्बन में बदला। पब्लिक स्कूलों में ही हमें ज्ञान के दर्शन होते हैं। शराब और नशीली गोलियों में परम तत्व की प्राप्ति जान पड़ती है। केक काटकर और मोमबत्ती बुझाकर बर्थ डे मनाया जाता है।
Similar questions