Hindi, asked by karunabanerjee91, 12 hours ago

आपकी पाठ्य पुस्तिका में संकलित कविता ' वाख ' कश्मीरी भाषा से हिंदी में अनुवाद है। आप कोई दूसरी कविता जिसका अन्य भाषा से हिंदी में अनुवाद किया गया हो, मूल रचना और उसका हिंदी अनुवाद अपनी कॉपी में लिखिए।
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Answered by 2255manishsoni
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I am also in 9th class

Explanation:

कश्मीरी भाषा की लोकप्रिय संत—कवयित्री ललद्यद का जन्म सन् 1320 के लगभग कश्मीर स्थित पाम्पोर के सिमपुरा गाँव में हुआ था। उनके जीवन के बारे में प्रामाणिक जानकारी नहीं मिलती। ललद्यद को लल्लेश्वरी, लला, ललयोगेश्वरी, ललारिफा आदि नामों से भी जाना जाता है। उनका देहांत सन् 1391 के आसपास माना जाता है।

ललद्यद की काव्य—शैली को वाख कहा जाता है। जिस तरह हिंदी में कबीर के दोहे, मीरा के पद, तुलसी की चौपाई और रसखान के सवैये प्रसिद्ध हैं, उसी तरह ललद्यद के वाख प्रसिद्ध हैं। अपने वाखों के ज़रिए उन्होंने जाति और धर्म की संकीर्णताओं से ऊपर उठकर भक्ति के ऐसे रास्ते पर चलने पर ज़ोर दिया जिसका जुड़ाव जीवन से हो। उन्होंने धार्मिक आडंबरों का विरोध किया और प्रेम को सबसे बड़ा मूल्य बताया।

लोक—जीवन के तत्वों से प्रेरित ललद्यद की रचनाओं में तत्कालीन पंडिताऊ भाषा संस्कृत और दरबार के बोझ से दबी फ़ारसी के स्थान पर जनता की सरल भाषा का प्रयोग हुआ है। यही कारण है कि ललद्यद की रचनाएँ सैकड़ों सालों से कश्मीरी जनता की स्मृति और वाणी में आज भी जीवित हैं। वे आधुनिक कश्मीरी भाषा का प्रमुख स्तंभ मानी जाती हैं।

विद्यार्थियों को भक्तिकाल की व्यापक जनचेतना और उसके अखिल भारतीय स्वरूप से परिचित कराने के उद्देश्य से यहाँ ललद्यद के चार वाखों का हिंदी अनुवाद प्रस्तुत किया जा रहा है। पहले वाख में ललद्यद ने ईश्वर—प्राप्ति के लिए किए जाने वाले अपने प्रयासों की व्यर्थता की चर्चा की है। दूसरे में बाह्याडंबरों का विरोध करते हुए यह कहा गया है कि अंतःकरण से समभावी होने पर ही मनुष्य की चेतना व्यापक हो सकती है। दूसरे शब्दों में इस मायाजाल में कम से कम लिप्त होना चाहिए। तीसरे वाख में कवयित्री के आत्मालोचन की अभिव्यक्ति है। वे अनुभव करती हैं कि भवसागर से पार जाने के लिए सद्कर्म ही सहायक होते हैं। भेदभाव का विरोध और ईश्वर की सर्वव्यापकता का बोध चौथे वाख में है। ललद्यद ने आत्मज्ञान को ही सच्चा ज्ञान माना है। प्रस्तुत वाखों का अनुवाद मीरा कान्त ने किया है।

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