आपने जो देश भक्ति की है उसके बारे में लिखिए
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दूर हो देश से, द्वेश परिवेश से,
है जरूरी बहुत ये वतन के लिए.
बीज नफरत के रोपें न अब बस करें,
है जरूरी बहुत ये चमन के लिए.
ये चमन है हमारा-तुम्हारा चलो,
मिलके सींचें इसे शुद्धतम भाव से.
कोई छोटा न हो हो न कोई बड़ा,
एक-दूजे को जीतें, नमन भाव से
उंच का नीज का भेद मिट जाये अब,
है जरूरी बहुत ये अमन के लिए.
दूर हो देश से द्वेष परिवेश से ................
देशहित हम करें काम निर्माण का,
चाहे संधान का चाहे खलिहान का.
सब सपन हम शहीदों के पूरे करें,
ऋण चुकाना हमें उनके बलिदान का.
देशहित निज कर्म तुम करो हम करें,
है जरूरी बहुत ये सृजन के लिए.
दूर हो देश से द्वेष परिवेश से ................
Explanation:
my poem desh bhakt army lover
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