आपस में कोई भेदभाव ना हो इसके लिए आप क्या करेंगे
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समाज में व्याप्त भेदभाव, छूआछूत, को मिटाने के लिए संत रविदास ने अपना जीवन समर्पित कर दिया। उनके आदर्शों और कर्मों से सामाजिक एकता की मिसाल हमें देखने को मिलती है लेकिन वर्तमान दौर में इस सामाजिक विषमता को मिटाने के सरकारी प्रयास असफल ही कहे जा सकते हैं। कहीं-कहीं आशा की किरण समाज क्षेत्र में कार्यरत सेवा भारती जैसे संस्थानों के प्रकल्पों में दृष्टिगोचर होती है।
भारत गावों में बसता है, गांवों में आज भी सामाजिक कुरीतियां कम नहीं हुयी हैं। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने छुआछूत को मिटाने का नारा दिया, उनका जीवन भी सामाजिक समरसता की मिसाल है। गांधी जी ने स्वाधीनता आंदोलन में जितने भी प्रकल्प तय किए, उनका ध्येय भारत की सामाजिक विषमता को पाटना था। वे चाहते थे कि समाज में ऊंच-नीच, भेदभाव, लिंग अनुपात और आर्थिक सम्पन्नता, विपन्नता की खाई खत्म हो और भारत एक लय, एक स्वर, एक समानता और एक अखंडता के साथ मंडलाकार प्रवृत्ति में विश्व का नेतृत्व करे। कुछ ऐसी ही परिकल्पना पं. दीनदयाल उपाध्याय ने भी की। यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सामाजिक एकता के इसी प्रकल्प को आगे बढ़ा रहे हैं।
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With regards
Nami