aapda Kise Kahate Hain Uttrakhand Mein ghatit Hone Wali Pramukh aapda ka ullekh karte hue Suraksha upay sujhaiye
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प्रकृति में बाढ़, सूखा, भूकम्प, सुनामी जैसी आकस्मिक आपदा समय-समय पर आती ही रहती हैं और इनके कारण जीवन और सम्पत्ति की बहुत हानि होती है। अतः यह बहुत महत्त्वपूर्ण है कि इन प्राकृतिक आपदाओं का सामना करने और जहाँ तक सम्भव हो इन आपदाओं को कम से कम करने के उपाय और साधन खोजे जाएँ।
मानव गतिविधियाँ जैसे आग, दुर्घटना, महामारी आदि द्वारा होने वाली आपदा विनाशकारी प्राकृतिक विपत्तियों की तरह ही आकस्मिक होती हैं और उन्हीं के समान विनाशकारी भी। इस पाठ में आप प्राकृतिक आपदाओं के साथ ही मानव निर्मित आपदाओं के भी कारण, प्रभाव, रोकथाम और प्रबन्धन के विषय में जानकारी प्राप्त करेंगे।
उद्देश्य
इस पाठ के अध्ययन के समापन के पश्चात, आपः
- प्रकृति में पारिस्थितिक संतुलन कैसे बनाये रखते हैं का वर्णन कर पायेंगे;
- मानव निर्मित और प्राकृतिक आपदाओं को वर्गीकृत कर सकेंगे;
- बाढ़, तूफान (चक्रवात) सूखे (जल और जलवायु सम्बन्धी आपदाओं) के कारण, प्रभाव और प्रबन्धन का वर्णन कर पायेंगे;
- भूकम्प (भूविज्ञान सम्बन्धी आपदा) के कारण, प्रभाव और प्रबन्धन को वर्णित कर पायेंगे;
- जंगल की आग, तेल रिसाव जैसी दुर्घटनाओं से सम्बन्धित आपदाओं से लेकर औद्योगिक दुर्घटनाओं के कारण, प्रभाव और प्रबन्धन का वर्णन कर पायेंगे;
- जैव सम्बन्धी आपदाओं (महामारियों जैसे डेंगू, एचआइवी (HIV) और पशु महामारी) के कारण, प्रभाव और प्रबन्धन का वर्णन कर पायेंगे;
- आपदा प्रबन्धन में सरकार और समुदाय (समाज) की भूमिका का वर्णन कर पायेंगे।
12.1 प्रकृति में पारिस्थितकीय संतुलन
जीवधारियों के जीवन-यापन और कुशलता के लिये प्रकृति में भरपूर संसाधन हैं। परन्तु प्रकृति के अपने प्राकृतिक नियंत्रण साधन भी होते हैं। प्रयोग में आये संसाधनों को प्रकृति पुनः भर देती है, आधिक्यता को नियंत्रण में रखती है और यह सब प्राकृतिक रूप से जैवीय, भू-रासायनिक चक्र के द्वारा होता है। इस प्रकार प्रकृति में संतुलन बना रहता है। इसमें खाद्य शृंखला और खाद्य जाल तथा अन्य प्राकृतिक घटनाओं का बहुत बड़ा हाथ है। इस प्रकार प्रकृति में प्राकृतिक संतुलन को नियमित किया जाता है। इसको पारिस्थितिकी संतुलन भी कहते हैं और आज के सन्दर्भ में प्रकृति का यह संतुलन मानव गतिविधियों के कारण गड़बड़ा गया है।
12-2 प्राकृतिक आपदा
भारतीय उपमहाद्वीप प्राकृतिक आपदाओं के लिये सबसे अधिक संभावित क्षेत्र है। बाढ़, सूखा, चक्रवात और भूकम्प भारत में बार-बार और जल्दी-जल्दी आते ही रहते हैं। प्राकृतिक आपदा मानवनिर्मित आपदाओं जैसे आग आदि की पुनरावृति से मिलकर और बढ़ जाते हैं। पर्यावरण के अवक्रमण से स्थलाकृति (टोपो = भूमि) परिवर्तित हो जाती है। इसके साथ ही प्राकृतिक आपदाओं के लिये असुरक्षा भी बढ़ जाती है। 1988 में कुल भूमि का 11.2% क्षेत्र ही बाढ़ संभावित था परन्तु 1998 तक यह भू-भाग बढ़ कर 37% हो गया। अभी हाल ही में जिन चार सबसे बड़ी आपदाओं का सामना भारत को करना पड़ा है वह हैं- महाराष्ट्र के लातूर जिले में 1993 में आने वाला भूकम्प, 1999 में उड़ीसा का बड़ा चक्रवात, 2001 में गुजरात का भूकम्प, दिसम्बर 2004 में आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु में आया सुनामी।
बार-बार आने वाली इन आपदाओं में जान और माल की बहुत हानि होती है। भौतिक सुरक्षा, विशेषकर जहाँ असुरक्षा अधिक है, इन बाधाओं के कारण खतरे में पड़ गई है। प्राकृतिक आपदाओं को रोका तो नहीं जा सकता परन्तु उनसे होने वाले दुष्परिणामों और क्षति को कुछ सावधानियाँ अपनाकर रोका जरूर जा सकता है जैसे अधिक कुशल भविष्यवाणी और प्रभावशाली बचाव साधनों के लिये अच्छी तैयारी होना। ऊपर बताई गयी चारों प्राकृतिक आपदाओं से यह स्पष्ट रूप से पता चलती है कि हमें बहुबाधा से होने वाली जान माल की हानि को कम करने और पुनः सुचारु करने के लिये उचित योजनाओं और तैयारियों की आवश्यकता है। आपदाओं के खतरे का प्रबन्धन वास्तव में विकास की समस्या है। पर्यावरण की जिस स्थिति को देश आज झेल रहा है, उसे ध्यान में रखते हुए आपदा प्रबन्धन की तैयारी और योजना तैयार करनी होगी।