Hindi, asked by shailvimishra888, 3 months ago

आराम स्पष्ट करे। संयत बदधि दवारा
कर्तव्य- पालन । in Hindi​

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Answered by mohitha810gamilcom
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Answer:

स्वामी प्रेमानंद पुरी पागल बाबा ने प्रवचनों में कहा है कि नाम संकीर्तन में वह शक्ति है जिससे भगवान हर क्षण भक्त के निकट बने रहते हैं। संसार का सामान्य व्यक्ति भी अपने नाम की महत्ता सुनकर प्रसन्न हो जाता है, लेकिन परमात्मा का नाम संकीर्तन मनुष्य के जन्म जन्मान्तरों को पाप-तापों का शमन कर उसे निर्मल कर अपने धाम का अधिकारी बना देता है।

उन्होंने कर्तव्य का बोध पर कहा कि मनुष्य को अपने कर्तव्य का पालन करना चाहिए, जिसको जो सेवा भगवान ने दी हो उसको पूरी निष्ठा के साथ पूरा करना चाहिए। सबसे बड़ा धर्म मनुष्य का अपने कर्तव्य को ठीक से करना है। साथ ही कर्तव्य करते हुए प्रत्येक क्षण उस जीवन दाता परमात्मा का स्मरण करते रहना चाहिए।

रामायण का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा जटायु ने सीता जी की रक्षा करने में अपने प्राण लगा दिए। श्रीराम का नाम सुमिरण करते हुए उन्होंने तब तक अपने प्राणों को रोके रखा जब तक श्री राम वहाँ नहीं आ पहुँचे। इसी प्रकार, भागवत में अजामिल की कथा आती है जिसके मुँह से मरते समय नारायण नाम का उच्चारण होने से भगवान के धाम को प्राप्त होता है। पाप और पुण्य तो सांसारिक धरातल में देखे जाते हैं। भगवान का नाम जपने वाले पाप-पुण्य से परे हो जाते हैं। उन्हें न तो पाप कर्म बाँध सकते हैं न ही पुण्य कर्म।

Explanation:

स्वामी प्रेमानंद पुरी पागल बाबा ने प्रवचनों में कहा है कि नाम संकीर्तन में वह शक्ति है जिससे भगवान हर क्षण भक्त के निकट बने रहते हैं। संसार का सामान्य व्यक्ति भी अपने नाम की महत्ता सुनकर प्रसन्न हो जाता है, लेकिन परमात्मा का नाम संकीर्तन मनुष्य के जन्म जन्मान्तरों को पाप-तापों का शमन कर उसे निर्मल कर अपने धाम का अधिकारी बना देता है।

उन्होंने कर्तव्य का बोध पर कहा कि मनुष्य को अपने कर्तव्य का पालन करना चाहिए, जिसको जो सेवा भगवान ने दी हो उसको पूरी निष्ठा के साथ पूरा करना चाहिए। सबसे बड़ा धर्म मनुष्य का अपने कर्तव्य को ठीक से करना है। साथ ही कर्तव्य करते हुए प्रत्येक क्षण उस जीवन दाता परमात्मा का स्मरण करते रहना चाहिए।

रामायण का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा जटायु ने सीता जी की रक्षा करने में अपने प्राण लगा दिए। श्रीराम का नाम सुमिरण करते हुए उन्होंने तब तक अपने प्राणों को रोके रखा जब तक श्री राम वहाँ नहीं आ पहुँचे। इसी प्रकार, भागवत में अजामिल की कथा आती है जिसके मुँह से मरते समय नारायण नाम का उच्चारण होने से भगवान के धाम को प्राप्त होता है। पाप और पुण्य तो सांसारिक धरातल में देखे जाते हैं। भगवान का नाम जपने वाले पाप-पुण्य से परे हो जाते हैं। उन्हें न तो पाप कर्म बाँध सकते हैं न ही पुण्य कर्म।

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