आर्यभट्ट ने कौन-कौन से सिद्धांत अपनी पुस्तिका में दिए
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आर्यभट्ट सिद्धांत प्रसिद्ध भारतीत गणितज्ञ आर्यभट्ट की लिखि पुस्तक थी। आज इसके मात्र 180 श्लोक ही उपलब्ध हैं। अपनी वृद्धावस्था में आर्यभट्ट ने आर्यभट्ट सिद्धांत के नाम से लिखी। यह दैनिक खगोलीय गणना और अनुष्ठानों के लिए शुभ मुहूर्त निश्चित करने के काम आती थी। आज भी पंचांग बनाने के लिए आर्यभट्ट की खगोलीय गणनाओं का उपयोग किया जाता है।
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Explanation:
उत्तर
आर्यभट्ट के कुछ सिद्धांत निम्नलिखित इस प्रकार है:
1. आर्यभट की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि भूभ्रमण ( अर्थात पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमती है ) का सिद्धांत प्रस्तुत करने वाले वे पहले भारतीय वैज्ञानिक हैं।
2. आर्यभट ने सूर्य-ग्रहण और चंद्र-ग्रहण के सही कारण बताए।
3. प्राचीन भारत के अधिकांश विचारकों ने पंचमहाभूत का प्रतिपादन किया, किन्तु आर्यभट ने केवल चार महाभूतों -- मिट्टी, जल, अग्नि और वायु को ही स्वीकार किया।*
4. आर्यभट ने महायुग को चार समान भागों में विभाजित किया, न कि मनुस्मृति की तरह 4 : 3 : 2 : 1 के अनुपात में।
5. आर्यभट ने वृत्त की परिधि और उसके व्यास के अनुपात (पाई) का मान 3.1416 दिया है, और इसे भी उन्होंने आसन्न यानी सन्निकट मान कहा है।
6. आर्यभट ने 345' के अंतर पर अर्धज्याओं** के जो मान दिए हैं। उनमें और आधुनिक त्रिकोणमिति द्वारा प्राप्त मानों में बहुत कम फर्क है।