Aarthik sudharo ki or badhta bharat pr nibandh
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भारत में जुलाई 1991 से आर्थिक सुधारों की प्रक्रिया अधिक स्पष्ट व अधिक व्यापक रूप से लागू की गई है । इसके तहत एलपीजी (उदारीकरण, निजीकरण व वैश्वीकरण) से जुड़े विभिन्न कार्यक्रम अपनाए गए हैं ।
इससे पूर्व देश में लाइसेंस, परमिट तथा अभ्यंश (कोटा) राज फैला हुआ था । अनेक प्रकार के आर्थिक नियंत्रणों की भरमार थी । नौकरशाही का बोलबाला था । अर्थव्यवस्था में खुलेपन का अभाव था । उस समय विश्व में आर्थिक उदारीकरण की हवा बहने लगी थी ।
भारत के समक्ष गम्भीर आर्थिक संकट की स्थिति उत्पन्न हो गई थी, क्योंकि विदेशी विनिमय कोष की मात्रा केवल दो सप्ताह के आयात के लायक शेष रह गई थी, मुद्रास्फीति की दर बढ्कर दो अंकों में आ गई थी, बजट घाटा अत्यधिक हो गया था और भारत की आर्थिक साख को भारी खतरा उत्पन्न हो गया था । ऐसी स्थिति में तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने उदारीकरण का नया मार्ग अपनाया था जिसके अन्तर्गत दो कार्यक्रम स्थिरीकरण कार्यक्रम और ढांचागत समायोजन कार्यक्रम अपनाए गए थे ।
स्थिरीकरण कार्यक्रम अल्पकालीन होता है और इसका जोर मांग प्रबंधन पर होता है, ताकि मुद्रास्फीति व बजट-घाटे नियंत्रित किए जा सकें । ढाचागत समायोजन कार्यक्रम मध्यकालीन होता है और इसमें पूर्ति प्रबंधन पर बल दिया जाता है तथा सभी आर्थिक क्षेत्रों जैसे राजकोषीय क्षेत्र के अलावा उद्योग, विदेशी व्यापार, वित्त, इन्फ्रास्ट्रक्चर, कृषि, सामाजिक क्षेत्र आदि सभी में व्यापक परिवर्तन व सुधार करके अर्थव्यवस्था को अधिक कार्यकुशल, प्रतिस्पर्धी व आधुनिक बनाने का प्रयास किया जाता है, ताकि वह विश्व की अर्थव्यवस्था से जुड़ सके तथा उसमें अधिक खुलापन व कार्यकुशलता आ सके ।
स्मरण रहे कि आर्थिक सुधारों का एक पक्ष आन्तरिक होता है और दूसरा बाहय होता है । आन्तरिक पक्ष में अर्थव्यवस्था को आन्तरिक रूप से सुदृढ़ किया जाता है, जैसे कृषि, उद्योग, परिवहन आदि का विकास किया जाता है और बाहय रूप में वैश्वीकरण को बढ़ावा दिया जाता है जिसके तहत विदेशी व्यापार, विदेशी पूंजी व विदेशी टेक्वोलीजी को बढ़ावा दिया जाता है ।
लेकिन भारत ने यह कार्य अनियंत्रित तरीके से नहीं करके सीमित गुण आधारित व चयनित तरीके से करने की नीति अपनाई है, जिसे ‘केलीब्रेटेड-ग्लोबलाइजेशन’ की नीति कहा गया है । इसके अन्तर्गत विदेशी सहयोग लेते समय यह देखा जाता है कि इससे स्वदेशी उद्योगों को कोई क्षति न पहुंचे । वैश्वीकरण के अंधाधुंध उपयोग से घरेलू उद्योग खतरे में पड़ सकते हैं इसलिए आवश्यक सावधानी व सतर्कता बरतने की आवश्यकता होती है ।
इससे पूर्व देश में लाइसेंस, परमिट तथा अभ्यंश (कोटा) राज फैला हुआ था । अनेक प्रकार के आर्थिक नियंत्रणों की भरमार थी । नौकरशाही का बोलबाला था । अर्थव्यवस्था में खुलेपन का अभाव था । उस समय विश्व में आर्थिक उदारीकरण की हवा बहने लगी थी ।
भारत के समक्ष गम्भीर आर्थिक संकट की स्थिति उत्पन्न हो गई थी, क्योंकि विदेशी विनिमय कोष की मात्रा केवल दो सप्ताह के आयात के लायक शेष रह गई थी, मुद्रास्फीति की दर बढ्कर दो अंकों में आ गई थी, बजट घाटा अत्यधिक हो गया था और भारत की आर्थिक साख को भारी खतरा उत्पन्न हो गया था । ऐसी स्थिति में तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने उदारीकरण का नया मार्ग अपनाया था जिसके अन्तर्गत दो कार्यक्रम स्थिरीकरण कार्यक्रम और ढांचागत समायोजन कार्यक्रम अपनाए गए थे ।
स्थिरीकरण कार्यक्रम अल्पकालीन होता है और इसका जोर मांग प्रबंधन पर होता है, ताकि मुद्रास्फीति व बजट-घाटे नियंत्रित किए जा सकें । ढाचागत समायोजन कार्यक्रम मध्यकालीन होता है और इसमें पूर्ति प्रबंधन पर बल दिया जाता है तथा सभी आर्थिक क्षेत्रों जैसे राजकोषीय क्षेत्र के अलावा उद्योग, विदेशी व्यापार, वित्त, इन्फ्रास्ट्रक्चर, कृषि, सामाजिक क्षेत्र आदि सभी में व्यापक परिवर्तन व सुधार करके अर्थव्यवस्था को अधिक कार्यकुशल, प्रतिस्पर्धी व आधुनिक बनाने का प्रयास किया जाता है, ताकि वह विश्व की अर्थव्यवस्था से जुड़ सके तथा उसमें अधिक खुलापन व कार्यकुशलता आ सके ।
स्मरण रहे कि आर्थिक सुधारों का एक पक्ष आन्तरिक होता है और दूसरा बाहय होता है । आन्तरिक पक्ष में अर्थव्यवस्था को आन्तरिक रूप से सुदृढ़ किया जाता है, जैसे कृषि, उद्योग, परिवहन आदि का विकास किया जाता है और बाहय रूप में वैश्वीकरण को बढ़ावा दिया जाता है जिसके तहत विदेशी व्यापार, विदेशी पूंजी व विदेशी टेक्वोलीजी को बढ़ावा दिया जाता है ।
लेकिन भारत ने यह कार्य अनियंत्रित तरीके से नहीं करके सीमित गुण आधारित व चयनित तरीके से करने की नीति अपनाई है, जिसे ‘केलीब्रेटेड-ग्लोबलाइजेशन’ की नीति कहा गया है । इसके अन्तर्गत विदेशी सहयोग लेते समय यह देखा जाता है कि इससे स्वदेशी उद्योगों को कोई क्षति न पहुंचे । वैश्वीकरण के अंधाधुंध उपयोग से घरेलू उद्योग खतरे में पड़ सकते हैं इसलिए आवश्यक सावधानी व सतर्कता बरतने की आवश्यकता होती है ।
riyanyk143:
thanx for this
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1947 के वर्ष में हमें अपनी स्वतंत्रता मिलने के बाद हम अपने राष्ट्र के हर संभव क्षेत्रों और पहलुओं को लगातार विकसित कर रहे हैं।
हम राष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न आधुनिक प्रणाली को लागू करके अपनी अर्थव्यवस्था का विकास कर रहे हैं।
अर्थव्यवस्था में इस आधुनिकीकरण के कारण, हमारा देश आर्थिक विकास और संभावनाओं के मामले में सबसे समृद्ध देशों में से एक बन गया है।
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