आशा अमरधन" कहानी की मूल संवेदना क्या है? विस्तार से लिखिए
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आशा।
मैं कृतज्ञ हूँ।
तुमने दिया मुझे
जीने का सम्बल।
मेरे दुर्दिन और घोर नैराश्य
के विकट पथ पर।
रेत के क्षणिक पगचिह्नों
की भांति।
बननते-बिगड़ते।
विक्षिप्त सा मैं
दौड़ता।
कटी पतंगों के पीछे।
जो ललचाती,हाथ न आती
आशा।
तुम अमरधन हो।
मैंने तुम्हें कभी खुद में
रिक्त न पाया।
निपट अकेलेपन मे भी।
और मेरी ढेर सारी हार मे भी
तुमने दिए मुझे
"उम्मीदों के तमगे।"
मेरी अमावश में अमरदीप जलाए।
मेरे आंसुओं को मेरी
ताकत मे ढाला तुमने।
रातों को सोने न दिया
मेरे दिवास्वप्नों के लिये।
मिटने न दिया,
चुनौतियों पर।
और सिखाया।
हर छोटी-बड़ी चोटों को सहना।
आशा।
तुम कुहासा में किरण बनी मेरे लिए।
उम्मीदों के घोंसलों में
कोशिशों के पंख देकर
मुझे परवाज दी तुमनें।
आशा।
मैं तुम्हारे उकसावे का प्रतिफल हूँ
आशा।
मैं कृतज्ञ हूँ
तुमने दिया मुझे
जीने का संबल।
डॉ देवेंद्र ।...
- हमें विश्वास है कि हमारे पाठक स्वरचित रचनाएं ही इस कॉलम के तहत प्रकाशित होने के लिए भेजते हैं। हमारे इस सम्मानित पाठक का भी दावा है कि यह रचना स्वरचित है।
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आशा अमरधन" कहानी की मूल संवेदना क्या है? विस्तार से लिखिए।
'आशा अमरधन' कहानी विजयदान देथा द्वारा लिखी गई कहानी है। यह कहानी बारिश में बारिश ना होने की वजह से अकाल पड़ने पर केंद्रित है। बारिश नहीं हुई है और अकाल पड़ने के कारण किसाv की आर्थिक दशा बदतर होती जा रही है। किसान ने किसी तरह कर्जा लेकर कुआँ खुदवाया, लेकिन उसमें पानी नहीं आया।
किसान पहले से ही परेशान है ऊपर से उसकी घरेलू समस्याएं उसे और परेशान कर रही हैं। किसान की पहली पत्नी से दो बच्चे हैं जो उसकी दूसरी पत्नी को पसंद नहीं आते हैं, और वह उन्हें मारने का प्रयास करती है। वह अपने प्रयास में सफल हो जाती है। ये कहानी मानवीय संवेदना को झकझोर देती है। इस कहानी में सौतेली माँ के निर्मम व्यवहार और किसानों की बदहाली का चित्रण किया गया है।
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