आशा की सूखी लतिकाएँ तुझको पाकर फिर लहराई ये किस कविता की पंक्तियाँ है?
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आशा की सूखी लतिकाएँ तुझको पाकर फिर लहराई'। ये किस कविता की पंक्तियाँ है?
उत्तर :
"आशा की सूखी लतिका तुझको पाकर पर लहराईं।" यह कविता 'सुभद्रा कुमारी चौहान' द्वारा लिखी गई 'स्वदेश के प्रति' नामक कविता से ली गई हैं।
व्याख्या :
इस कविता में कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान ने अपने स्वदेश का स्वागत करते हुए अपने मन के भाव प्रकट किए हैं।
यह पंक्तियां कविता के आखरी खंड की पंक्तियां हैं, जिन का अर्थ है कि अपने स्वदेश को पाकर जीवन में जो निराशा की भावना थी वो आशा में बदल गयी और मन में जो भी भय व्याप्त था वह निर्भय हो गया।
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