History, asked by palavrasika806, 6 months ago

आशिवन.माहिन्यातील.निसर्गाचे.निरीक्षण.करा.त्याचा.अनुभव.घ्या.व.अनुभवलेखन.करा​

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सनातन परंपरा में दान का बहुत महत्व है. अलग-अलग इच्छाओं को पूरा करने से लेकर कुछ रस्मोरिवाजों और दोषों, पापों आदि को दूर करने तक के लिए हम अन्नदान, अंगदान, वस्त्रदान, द्रव्यदान, पुस्तकदान आदि करते हैं. तमाम चीजों के लिए दिए जाने वाले दान का एक आधार होता है. व्रत, पर्व, ऋतु और महीनों के अपने अलग-अलग दान होते हैं.

सनातन परंपरा में दान का बहुत महत्व है. अलग-अलग इच्छाओं को पूरा करने से लेकर कुछ रस्मोरिवाजों और दोषों, पापों आदि को दूर करने तक के लिए हम अन्नदान, अंगदान, वस्त्रदान, द्रव्यदान, पुस्तकदान आदि करते हैं. तमाम चीजों के लिए दिए जाने वाले दान का एक आधार होता है. व्रत, पर्व, ऋतु और महीनों के अपने अलग-अलग दान होते हैं.दान में बिल्कुल न करें अभिमान

सनातन परंपरा में दान का बहुत महत्व है. अलग-अलग इच्छाओं को पूरा करने से लेकर कुछ रस्मोरिवाजों और दोषों, पापों आदि को दूर करने तक के लिए हम अन्नदान, अंगदान, वस्त्रदान, द्रव्यदान, पुस्तकदान आदि करते हैं. तमाम चीजों के लिए दिए जाने वाले दान का एक आधार होता है. व्रत, पर्व, ऋतु और महीनों के अपने अलग-अलग दान होते हैं.दान में बिल्कुल न करें अभिमानदान हमेशा विनम्रता के साथ करना चाहिए. कभी भी अभिमान करते हुए या किसी को एहसास कराकर दान नहीं करना चाहिए. हमें सदैव इस भावना से दान करना चाहिए कि हम ईश्वर से मिली हुई चीज को उसी ईश्वर को अर्पण कर रहे हैं. ध्यान रहे कि बगैर श्रद्धा और विश्वास के दिया गया दान निरर्थक होता है. मेहनत और ईमानदारी से कमाए गए धन या फिर उससे खरीदी गई वस्तु का दान पूरी तरह से फलित होकर सुख-समृद्धि देने वाला और जीवन से जुड़े दोषों को दूर करने वाला होता है.

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