Aashay spasht kijiye Lawrence ki tarah jindagi ka pratirodh ban Gaye the
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) लेखक को लगता है कि जिस प्रकार सुप्रसिद्ध उपन्यासकार एवं कवि डी० एच० लॉरेंस प्रकृति से गहरा लगाव रखते थे और मानते थे कि ‘मानव जाति एक उखड़े हुए महान वृक्ष की भांति है, जिसकी जड़ें हवा में फैली हुई हैं।’इसलिए ‘हमारा प्रकृति की ओर लौटना जरूरी है।’ उसी प्रकार सलीम अली भी प्रकृति से बहुत लगाव रखते थे। वे प्रकृति की दुनिया में अथाह सागर बनकर उभरे थे। इसलिए वे प्राकृतिक जीवन के प्रतिनिधि बन गए थे।
ख) लेखक का कहना है कि जब किसी की मृत्यु हो जाती है तो उस मरे हुए व्यक्ति को यदि कोई अन्य व्यक्ति अपने शरीर की गर्मी और अपने दिल की धड़कनें देकर जीवित करना चाहे तो संभव नहीं है। कोई भी व्यक्ति अपनी सांसे देकर किसी मरे हुए व्यक्ति को जीवित नहीं कर सकता। जो पक्षी मर जाता है उसे फिर से जीवित नहीं किया जा सकता। वह फिर से अपना कलरव नहीं कर सकता।
ग) लेखक का मानना है कि सलीम अली को प्रकृति से बहुत प्रेम था। उन्होंने प्रकृति का बहुत बारीकी से निरीक्षण किया था। वे दूरबीन से प्रकृति के प्रत्येक हृदय का आनंद लेते थे। एकांत के पलों में भी वे प्रकृति को अपनी दूरबीन रोहित आंखों से निहारते रहते थे। इसी प्रकृति प्रेम ने उन्हें पक्षियों का प्रेमी बना दिया था। जैसे सागर बहुत गहरा होता है उसी प्रकार सलीम अली का प्रकृति प्रेमी भी बहुत गहरा था।
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किसी प्रतिरोधक के सिरों के बीच विभवान्तर तथा उससे प्रवाहित विद्युत धारा के अनुपात को उसका विद्युत प्रतिरोध (electrical resistannce) कहते हैं।इसे ओह्म में मापा जाता है। इसकी प्रतिलोमीय मात्रा है विद्युत चालकता, जिसकी इकाई है साइमन्स।
{\displaystyle R={\frac {V}{I}}}{\displaystyle R={\frac {V}{I}}}
जहां
R वस्तु का प्रतिरोध है, जो ओह्म में मापा गया है, J·s/C2के तुल्य
V वस्तु के आर-पार का विभवांतर है, वोल्ट में मापा गया।
I वस्तु से होकर जाने वाली विद्युत धारा है, एम्पीय़र में मापी गयी।
बहुत सारी वस्तुओं में, प्रतिरोध विद्युत धारा या विभवांतर पर निर्भर नहीं होता, यानी उनका प्रतिरोध स्थिर रहता है।