आत्मा का स्वरूप क्या है?
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जिसकी दृष्टि में आत्मा अपूर्व (अनादि), अकृत (अजन्मा), नित्य, अचल, अग्राह्य और अमृताशी है, वह इन गुणों का चिन्तन करने से स्वयं भी अग्राह्य (इन्द्रियातीत) निश्चल एवं अमृत स्वरूप हो जाता है, जो चित्त को शुद्ध करने वाले सम्पूर्ण संस्कारों का सम्पादन करके मन को आत्मा के ध्यान में लगा देता है, वही इस कल्याणमय ब्रह्मा को
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आत्मा का एक प्रमुख स्वभाव है, वो है नित्यता। नित्यता मतलब सदा रहने वाला, अर्थात अमर। गीता २. २० और कठोपनिषद् १.२.१८ कहते है "आत्मा नित्य है।" अर्थात आत्मा अमर है
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