आत्मनिर्भर भारत पर निबंध
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आत्मनिर्भरता केवल व्यक्ति के लिए ही नहीं, राष्ट्र के लिए भी आवश्यक है । स्वतन्त्रता के बाद कई वर्षों तक भारत खाद्यान्न के लिए दूसरे राष्ट्रों पर निर्भर था । इसके कारण इसे कई प्रकार की कठिनाइयों का सामना करना पड़ता था ।
साठ के दशक में हुई हरित क्रान्ति के बाद भारत खाद्यान्न के मामले में आत्मनिर्भर बना । यह भारत की आत्मनिर्भरता का ही नतीजा रहा कि देश की जनता की खुशहाली में स्वाभाविक तौर पर वृद्धि हुई ।
हमारी भूतपूर्व प्रधानमन्त्री श्रीमती इन्दिरा गाँधी ने कहा है- “एक राष्ट्र की शक्ति उसकी आत्मनिर्भरता में है, दूसरी से उधार लेकर काम चलाने में नहीं ।” आत्मनिर्भरता से ही मनुष्य की प्रगति सम्भव है ।
आत्मनिर्भर व्यक्ति ही अपना एवं अपने परिवार का भरण-पोषण करने में सक्षम होता है । बैसाखी के सहारे चलने बाले व्यक्ति की बैसाखी छीन ली जाए, तो वह चलने में असमर्थ हो जाता है । ठीक यही स्थिति दूसरों के सहारे जीने वाले लोगों की भी होती है ।
मनुष्य यदि सिर्फ प्रकृति पर ही निर्भर रहता, तो उसने जीवन के हर क्षेत्र में जो प्रगति हासिल की है, उसे वह कभी प्राप्त नहीं कर पाता । मनुष्य की आत्मनिर्भरता ने ही उसे पशुओं से अलग किया है ।
हालाँकि पशु स्वाभाविक रूप से अधिक आत्मनिर्भर होते है, किन्तु आत्मनिर्भरता प्राप्त करने की चाह मनुष्य में अधिक होता है । वह अपने जीवन में सुख की प्राप्ति के लिए हर प्रकार के साधन जुटाना चाहता है, इसके लिए उसे स्वयं परिश्रम करने की आवश्यकता पड़ती है ।
आत्मनिर्भरता की उसकी यही चाह उसकी प्रगति का कारण बनती है । गृहस्थ जीवन से पहले व्यक्ति का आत्मनिर्भर होना अत्यन्त आवश्यक है । दूसरों पर निर्भर लोगों के लिए गृहस्थ जीवन दु:खों का पहाड़ साबित होता है ।
इसलिए गृहस्थ जीवन की शुरूआत से पहले लोग रोजगार की तलाश में जुट जाते हैं । आत्मनिर्भरता आत्मविश्वास को बढ़ाने में सहायक होती है, जिसके कारण सफलता की राह आसान हो जाती है ।
आत्मनिर्भर व्यक्ति अपने समय का सदुपयोग भली-भांति कर पाने में सक्षम होता है । वह समाज में प्रतिष्ठा का पात्र बनता है । यदि कोई महान् लेखक बनने का सपना देखता है, तो उसे स्वयं लिखना ही पड़ेगा, दूसरों पर निर्भर रहकर वह महान् लेखक कदापि नहीं बन सकता ।
एक वैज्ञानिक स्वयं अपने शोध द्वारा किसी निष्कर्ष पर पहुँचता है, दूसरों के शोध के आधार पर वह अपने लक्ष्य तक नहीं पहुँच सकता । खिलाड़ियों को जीत का स्वाद चखने के लिए स्वयं खेलना पड़ता है ।
यदि कोई छात्र अपने जीवन में सफलता प्राप्त करना चाहता है, तो उसे स्वयं परीक्षा में शामिल होना पड़ेगा और परीक्षा में मनोवांछित सफलता प्राप्त करने के लिए उसे स्वयं अध्ययन करना होगा ।
इसी प्रकार जीवन के हर क्षेत्र में उसे ही सफलता मिलती है, जो आत्मनिर्भर होता है । भारत पारिजात में लिखा है- “जो आत्म-शक्ति का अनुसरण करके संघर्ष करता है, उसे महान् विजय अवश्य मिलती है ।”