आत्मनिर्भर गुटों के लाभ बताइए।
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पहला गुण – ग्रहणशीलता
ग्रहणशीलता तथा लचीलापन ये स्त्री का सबसे पहला और अहम् गुण है, जिसकी वजह से उसमे समर्पित भाव और प्रेम सहजता से उभर आता है। पुरुष भी समर्पण करता है लेकिन सबसे पहले उसे बुद्धि के बल पर विश्वास बढ़ाना पड़ता है, प्रयास करना पड़ता है। पुरषों के लिए जो प्रयास है, वह स्त्री को सहज संभव है। अर्थात जिस शरीर में ग्रहणशीलता प्रबल और सहज साध्य होती है, उसे स्त्री कहा जा सकता है।
दूसरा गुण – निरंतर कार्यक्षमता
स्त्री का दूसरा गुण है निरंतर कार्यक्षमता। दुनिया में जो भी कार्य चल रहे हैं और जहाँ एक ही जगह पर बैठकर कुछ कार्य करने पड़ते हैं, वहाँ निरंतरता की आवश्यकता होती है। ऐसे काम करते हुए पुरुष जल्दी उत्साह खो देता है। वह एक जगह पर ज्यादा देर नहीं बैठ सकता। हमेशा यहाँ वहाँ भागते रहता है। लेकिन स्त्रियों के लिए ये सहज रूप से संभव हो जाता है। एक ही घर में वो बीस साल, पच्चीस साल, चालीस साल, इतना ही नहीं कई साल रह सकती है। किसी काम में स्त्री लग जाएगी तो कितना भी बोरिंग काम हो, वह निरंतरता से कर सकती है। नौ महीने पेट में बच्चे को रखना कितना बोरिंग काम हो सकता है मगर उसके लिए यह सहज है, पुरुष यह नहीं कर पाएगा। शायद पुरुष ये काम बिलकुल भी नहीं कर सकते इसीलिए माता बनने का वर सृष्टि ने स्त्री को ही दिया है।
तीसरा गुण – सहनशीलता
स्त्री का तीसरा गुण है सहनशीलता। बच्चे को पैदा करने की अत्यंत प्रसव पीड़ा स्त्री ही सह पाती है क्योंकि उसके अंदर सहनशीलता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि उसमें इस पूरी प्रक्रिया को झेलने के लिए पर्याप्त धैर्य और शक्ति होती है। नारी की सहनशीलता कमाल की होती है। लेकिन सहनशीलता की यह क्षमता कई महिलाओं के लिए हानिकारक होती है। इसी गुण के कारण वह पुरुषों के अत्याचार, हिंसा और गलत व्यवहार को चुपचाप झेलती रहती है। जो चीज सहज होती है उसे आप करते रहते हैं। सहनशीलता स्त्री का एक अच्छा गुण था,उसे अगर सही दिशा में लगाया जाता तो विश्व के बड़े से बड़े कार्य हो सकते थे मगर स्त्री की कमजोरी के कारण इस सहनशीलता का लाभ अत्याचारियों को ही मिला। अत्याचार करने वालों ने उसका नाजायज फायदा उठाया।
अच्छे विश्व का निर्माण करने के लिए महिला जागृति परम आवश्यक है। यह जागृति पुरुषों द्वारा हुए अत्याचार से बदला लेने के लिए न होकर, विश्व क्रांति के लिए हो, प्रेम और सहनशीलता का पाठ पढ़ाने के लिए हो, विश्व शांति के लिए हो।
सौंदर्य, लज्जा, विनय, क्षमा, संतोष, विनम्रता, करुणा, मधुर वाणी, त्याग, आदि नारी के आभूषण हैं। इतिहास गवाह है, नारी के अनेक रूपों को इतिहास सराहता है और हर युग में इसे आदर दिया गया है। इन गुणों के अतिरिक्त स्त्रियों में अन्य गुण भी होने चाहिए, जिससे वे अपने आपको संपूर्ण व स्वाभिमानी महसूस कर पाएँ। नारी अपने संपूर्ण विकास के लिए अपने भीतर के गुणों को पहचानें और आत्मनिर्भर बनें।
स्व-सहायता समूह स्थिति और आवश्यकता के आधार पर कई अलग-अलग उद्देश्यों की सेवा कर सकते हैं
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स्व-सहायता समूह उन लोगों के अनौपचारिक समूह हैं जो अपनी सामान्य समस्याओं को हल करने के लिए एक साथ आते हैं। जबकि स्व-सहायता व्यक्ति पर ध्यान केंद्रित कर सकती है, स्व-सहायता समूहों की एक महत्वपूर्ण विशेषता आपसी समर्थन का विचार है - लोग एक-दूसरे की सहायता करते हैं
पिछले 20 वर्षों में, स्वयं सहायता समूहों का उपयोग विकलांगता क्षेत्र में विभिन्न रूपों में किया गया है, और विकलांग लोगों और उनके परिवारों के स्वयं सहायता समूह स्वास्थ्य देखभाल, पुनर्वास, शिक्षा, माइक्रोक्रेडिट सहित गतिविधियों की एक पूरी श्रृंखला में लगे हुए हैं। और चुनाव प्रचार। स्व-सहायता समूह सशक्तिकरण की सुविधा प्रदान कर सकते हैं; एक समूह (या संगठन) से संबंधित एक मुख्य साधन है जिसके माध्यम से विकलांग लोग अपने समुदायों में भाग ले सकते हैं और यह समूहों में शामिल होने के माध्यम से है कि वे अपनी जागरूकता और क्षमता विकसित करना शुरू कर सकते हैं व्यवस्थित करने और कार्रवाई करने और परिवर्तन लाने के लिए