आत्मत्राण कविता का उद्देश्य
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आत्मत्राण शब्द का अर्थ है अपना बचाओ या आत्मरक्षा | इस कविता में कवि अपने बचाव की बात करता है | कभी यह नहीं चाहता कि भगवान उसकी रक्षा करें, बल्कि कवि यह चाहता है कि वह अपनी आत्मरक्षा स्वयं करें | वह यह नहीं चाहता कि कवि उसकी आपत्तियों को दूर कर दे, वह यह चाहता है कि उसे उन विपत्तियों से संघर्ष करने की क्षमता दे | मनुष्य अपनी रक्षा तथा कार्य सिद्धि के लिए भगवान से प्रार्थना करता रहता है और वह हर काम में भगवान पर निर्भर रहकर स्वयं कुछ नहीं करना चाहता | वह कार्यरत बन जाता है और कामना बनने पर उसकी भगवान से आस्था बिगड़ जाती है | कवि यह कहता है कि यदि उसका कोई नुकसान भी हो जाए तो मैं प्रभु को अपनी क्षति ना मोनू | यदि उसके दुखों का भार बढ़ जाए तो उसको मैं स्वयं वहन कर सकूं इतनी शक्ति हमें दे देना | इसलिए कवि भगवान से अपना बचाव सोए करने की शक्ति मांगता है |