‘आदमी की पीर’ गजल का काव्य-सौन्दर्य स्पष्ट कीजिए।
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आदमी की पीर’ गजल में कवि दुष्यन्त कुमार ने समाज में परिवर्तन हो सकने की आशा व्यक्त की है। इस गजल का काव्य-सौन्दर्य इस प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है – भावगत सौन्दर्य-कवि सामाजिक परिवेश की दशा-कुदशी को लेकर कहता है कि इस नदी की धार से ठण्डी हवा तो आती है और जर्जर नाव नदी की लहरों से टकराकर भी पार चली जाती है। दीये में तेल भी है और बत्ती भी है, केवल एक चिनगारी की जरूरत है जो उसे प्रज्वलित कर दे। गूंगा आदमी भी प्रयास करने पर अपनी व्यथा प्रकट कर देता है, रात के अंधेरे के बाद सुबह का प्रकाश फैलता है तथा नदी की लहरें भी पत्थरों से टकराकर अपना मार्ग प्रशस्त करती हैं।
इसलिए कवि कहता है कि अनेक बाधाओं का सामना करने से, आगे बढ़ते रहने का साहस करने और आशावादी होने से बुरी दशाओं में अवश्य परिवर्तन हो सकता है। आदमी की पीड़ा धैर्य से सहन करने से कुछ हल्की हो जाती है। इस प्रकार प्रस्तुत गजल में जनचेतना को लेकर प्रेरणादायी भावों की व्यंजना हुई है। कलागत सौन्दर्य प्रस्तुत गजल में शब्दावली सरल एवं भावानुकूल है। नदी, नाव, दीपक, बत्ती आदि का प्रतीकात्मक प्रयोग हुआ है। साथ ही उपमा अलंकार को प्रयोग भाव-सौन्दर्य को बढ़ा रहा है। शब्द तत्सम, तद्भव एवं उर्दू मिश्रित हैं। गजल की गेयता एवं तुकान्तता प्रशस्य है।