'आधुनिक काव्य सचयन
‘महत्त्वपूर्ण व्याख्याएँ
(हरिऔध)
इन्द्र का गर्व हरण, प्रिय प्रवास (द्वादस सर्ग)
(1)
सरस-सुन्दर सावन-मास था।
घन रहे नभ में घिर-घूमते।
जिनमें रही।
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Pata nahi
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