Hindi, asked by aroradhruv5918, 11 months ago

आध्यात्मिक मूल्यों का लोप पर निबंध | Omit of Spiritual Values

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Answered by rishirajnadan
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आज मनुष्य अत्यधिक भौतिकवादी तथा लालची हो गया है । “बलिदान”, “त्याग’’ “संतोष’’, “प्रज्ञा’’, “चिन्तन-मनन’’, “लोकातीत-अनुभूति’’, “मुक्ति’’ तथा “मोक्ष’’ जैसे शब्द, जो कि आध्यात्मिक मूल्यों के द्योतक हैं, हमारे शब्दकोष से लुप्त हो चुके हैं ।

व्यापक उपभोगवादी संस्कृति तथा भोग-विलास से पोषित भौतिकवाद ने हमारी आध्यात्मिक चेतना पर पर्दा डाल दिया है । धन-अर्जन, सत्ता तथा प्रसिद्धि की लालसा और सुखवादी जीवन-प्रणाली आज जीवन का परम लक्ष्य बन चुका है ।

सभी धर्मों ने लालच को महापाप कहा है । परन्तु, आज लालच ही मुख्य प्रेरणा- द्वार है । केवल सम्पत्ति-प्रभुत्व वाले पूंजीवाद की ही नहीं, अपितु तथाकथित समाजवाद की भी चिन्तन धारा लालच का ही अर्थात् अधिक खाद्य, पेय, कामुकता, सम्पत्ति, सत्ता तथा प्रसिद्धि का पोषण करती है । मनुष्य इस पर भी संतुष्ट नहीं है ।

उसका सामूहिक लालच हमारी इस सुन्दर धरती के दुर्लभ तथा अपूरणीय संसाधनों को लूट रहा है तथा समस्त मानव-जाति को पर्यावरणीय विनाश अथवा पर्यावरणघात (इकोसाईड) के कगार की ओर ले जा रहा है ।

सभी धर्म, धर्माचार्य, संत तथा ऋषि-मुनि आध्यात्मिक मूल्यों को सर्वोच्च महत्व देते हैं । हिन्दू धर्म के आध्यात्मिक मूल्यों का अनुक्रम है-धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्ष । अर्थ तथा काम सांसारिक मूल्य है, जबकि धर्म तथा मोक्ष आध्यात्मिक मूल्य हैं । परन्तु धर्म का स्थान सर्वप्रथम है । यह अर्थ तथा काम दोनों का प्रेरक तथा शासक है ।


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