Hindi, asked by Bhawanpreet5604, 11 months ago

Aatma sammaan in hindi paragraph writing

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Answered by jeetsingh29
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आत्म – सम्मान पर निबन्ध | Essay on Self Respect in Hindi!

प्राचीन युग में सभी भारतीयों में आत्म-सम्मान की भावना कूट-कूट कर भरी हुई थी । पर कुछ काल तक पराधीन अवस्था के कारण वह प्राय: लुप्त सी हो गयी थी । आज हम स्वतंत्र हैं । हमें इस भावना को और अधिक प्रबल करना है । यही मनुष्यता की सीढ़ी है । इसको न पाकर हम पशु के समान ही रह जाते हैं ।

आत्म-सम्मान की रक्षा के लिए आत्म-विश्वास को आगे रखना पड़ता है । इसी के बल पर आत्म-सम्मान का प्रसाद खड़ा हो जाता है । हमारे मन की आकांक्षाओं पर जब तक हमें पूर्ण करने में असमर्थ रहेंगे । इसी कमी की पूर्ति आत्म – विश्वास के द्वारा हो जाती है । इसके लिए हम अहंकार और स्वार्थ के लिए झूठ बोलते हैं, चोरी करते हैं और धोखा आदि देते हैं ।

इतना ही नहीं समय पड़ने पर वह अपनी आत्मा और सम्मान को कौड़ियों के बदले दे डालता है । ऐसे व्यक्ति से आत्म-सम्मान कोसों दूर भाग जाता है । अत: उन्हें चाहिए कि वे ऐसे जीवन से दूर रहकर अपनी आत्मा को निष्कलंक और पवित्र बनायें । तभी उनका राष्ट्र में सम्मान हो सकेगा ।

आत्म-सम्मान ही ऐसी निर्मल धारा है जोकि हमारी कलुषित भावना को धो देती है । ऐसी पवित्र धारा में स्नान करके हम अपने वर्तमान और भविष्य को उज्जल बना लेते हैं । देश को हम पर अभिमान होता है । हमारी आत्मा सुख और शान्ति में बनी रहती है । हमारे साथी हमें विश्वास का दृष्टि से देखते हैं ।

समाज में हमें सम्मान प्राप्त होता है । इसी के बल पर हम अपनी संस्कृति और सभ्यता की रक्षा कर सकते हैं । इसी के कारण सफलता हमारे कदमों को चूमती रहती है अत: प्रत्येक व्यक्ति के अपने आत्म-सम्मान की रक्षा करनी चाहिए ।

Answered by harnoork613
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आत्मसम्मान मनुष्यता की पहली सीढ़ी है। मनुष्य और पशु में एक मुख्य अंतर है - आत्मसम्मान के भाव का। पशु के साथ आपके ऐसा ही घटिया व्यवहार करें, उसे कोई फर्क नहीं पड़ता, परंतु मनुष्य आत्मसम्मान के लिए ही जीवित रहता है। जो जाति, पीडी आत्मसम्मान का भाव नहीं रखती है, वह पराधीन रहती है। पर दिन होने के कारण हमारे आत्मसम्मान को ठेस पहुंचती है। हमारे मन की आकांक्षाओं पर जब तक हमें पूर्ण विश्वास नहीं होगा तब तक हम उनको पूर्ण करने में असमर्थ रहेंगे। कुछ लोग झूठा सम्मान रखते हैं, ऐसे व्यक्ति अपने जीवन का विनाश कर लेते हैं। आत्मसम्मान ऐसे निर्मल धारा है जिसमें हम स्नान करके अपने वर्तमान व भविष्य को उज्ज्वल बना लेते हैं तथा भूतकाल के कलंक को मिटा लेते हैं। इसी के बल पर हम अपनी संस्कृति व सभ्यता की रक्षा करते है।

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