Aatmasamman par 40-60 word paragraph in hindi by today .
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आत्म – सम्मान पर निबन्ध | Essay on Self Respect in Hindi!
प्राचीन युग में सभी भारतीयों में आत्म-सम्मान की भावना कूट-कूट कर भरी हुई थी । पर कुछ काल तक पराधीन अवस्था के कारण वह प्राय: लुप्त सी हो गयी थी । आज हम स्वतंत्र हैं । हमें इस भावना को और अधिक प्रबल करना है । यही मनुष्यता की सीढ़ी है । इसको न पाकर हम पशु के समान ही रह जाते हैं ।
आत्म-सम्मान की रक्षा के लिए आत्म-विश्वास को आगे रखना पड़ता है । इसी के बल पर आत्म-सम्मान का प्रसाद खड़ा हो जाता है । हमारे मन की आकांक्षाओं पर जब तक हमें पूर्ण करने में असमर्थ रहेंगे । इसी कमी की पूर्ति आत्म – विश्वास के द्वारा हो जाती है । इसके लिए हम अहंकार और स्वार्थ के लिए झूठ बोलते हैं, चोरी करते हैं और धोखा आदि देते हैं ।
इतना ही नहीं समय पड़ने पर वह अपनी आत्मा और सम्मान को कौड़ियों के बदले दे डालता है । ऐसे व्यक्ति से आत्म-सम्मान कोसों दूर भाग जाता है । अत: उन्हें चाहिए कि वे ऐसे जीवन से दूर रहकर अपनी आत्मा को निष्कलंक और पवित्र बनायें । तभी उनका राष्ट्र में सम्मान हो सकेगा ।
आत्म-सम्मान ही ऐसी निर्मल धारा है जोकि हमारी कलुषित भावना को धो देती है । ऐसी पवित्र धारा में स्नान करके हम अपने वर्तमान और भविष्य को उज्जल बना लेते हैं । देश को हम पर अभिमान होता है । हमारी आत्मा सुख और शान्ति में बनी रहती है । हमारे साथी हमें विश्वास का दृष्टि से देखते हैं ।
समाज में हमें सम्मान प्राप्त होता है । इसी के बल पर हम अपनी संस्कृति और सभ्यता की रक्षा कर सकते हैं । इसी के कारण सफलता हमारे कदमों को चूमती रहती है अत: प्रत्येक व्यक्ति के अपने आत्म-सम्मान की रक्षा करनी चाहिए ।
प्राचीन युग में सभी भारतीयों में आत्म-सम्मान की भावना कूट-कूट कर भरी हुई थी । पर कुछ काल तक पराधीन अवस्था के कारण वह प्राय: लुप्त सी हो गयी थी । आज हम स्वतंत्र हैं । हमें इस भावना को और अधिक प्रबल करना है । यही मनुष्यता की सीढ़ी है । इसको न पाकर हम पशु के समान ही रह जाते हैं ।
आत्म-सम्मान की रक्षा के लिए आत्म-विश्वास को आगे रखना पड़ता है । इसी के बल पर आत्म-सम्मान का प्रसाद खड़ा हो जाता है । हमारे मन की आकांक्षाओं पर जब तक हमें पूर्ण करने में असमर्थ रहेंगे । इसी कमी की पूर्ति आत्म – विश्वास के द्वारा हो जाती है । इसके लिए हम अहंकार और स्वार्थ के लिए झूठ बोलते हैं, चोरी करते हैं और धोखा आदि देते हैं ।
इतना ही नहीं समय पड़ने पर वह अपनी आत्मा और सम्मान को कौड़ियों के बदले दे डालता है । ऐसे व्यक्ति से आत्म-सम्मान कोसों दूर भाग जाता है । अत: उन्हें चाहिए कि वे ऐसे जीवन से दूर रहकर अपनी आत्मा को निष्कलंक और पवित्र बनायें । तभी उनका राष्ट्र में सम्मान हो सकेगा ।
आत्म-सम्मान ही ऐसी निर्मल धारा है जोकि हमारी कलुषित भावना को धो देती है । ऐसी पवित्र धारा में स्नान करके हम अपने वर्तमान और भविष्य को उज्जल बना लेते हैं । देश को हम पर अभिमान होता है । हमारी आत्मा सुख और शान्ति में बनी रहती है । हमारे साथी हमें विश्वास का दृष्टि से देखते हैं ।
समाज में हमें सम्मान प्राप्त होता है । इसी के बल पर हम अपनी संस्कृति और सभ्यता की रक्षा कर सकते हैं । इसी के कारण सफलता हमारे कदमों को चूमती रहती है अत: प्रत्येक व्यक्ति के अपने आत्म-सम्मान की रक्षा करनी चाहिए ।
aayushsg1:
I had asked paragraph ,but still works for me
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प्राचीन युग में सभी भारतीयों में आत्म-सम्मान की भावना कूट-कूट कर भरी हुई थी । पर कुछ काल तक पराधीन अवस्था के कारण वह प्राय: लुप्त सी हो गयी थी । आज हम स्वतंत्र हैं । हमें इस भावना को और अधिक प्रबल करना है । यही मनुष्यता की सीढ़ी है । इसको न पाकर हम पशु के समान ही रह जाते हैं ।
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