अब लौं नसानी, अब न नसैहौं।
रामकृपा भव-निसा सिरानी, जागे पुनि न डसैहौँ।
पायो नाम चारू चिंतामनि, उर कर ते न खसैहौं।
स्याम रूप सुचि रुचिर कसौटी, चित कंचनहि कसैहौं।
परबस जानि हँस्यो इन इन्द्रिन निज बस है न हँसैहौं।
मन मधुकर पन कर तुलसी रघुपति पद कमल बसैहौं ॥2
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matlab samajh me nhi aaya please tell
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