अभिलेख या अभिलेखों के संरक्षण और पुणे स्थापन के लिए अपनाए गए विधियों की चर्चा कीजिए
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Answer: किसी विशेष महत्व अथवा प्रयोजन के लेख को अभिलेख कहा जाता है। यह सामान्य व्यावहारिक लेखों से भिन्न होता है। प्रस्तर, धातु अथवा किसी अन्य कठोर और स्थायी पदार्थ पर विज्ञप्ति, प्रचार, स्मृति आदि के लिए उत्कीर्ण लेखों की गणना प्राय: अभिलेख के अंतर्गत होती है। कागज, कपड़े, पत्ते आदि कोमल पदार्थों पर मसि अथवा अन्य किसी रंग से अंकित लेख हस्तलेख के अंतर्गत आते हैं। कड़े पत्तों (ताडपत्रादि) पर लौहशलाका से खचित लेख अभिलेख तथा हस्तलेख के बीचे में रखे जा सकते हैं। मिट्टी की तख्तियों तथा बर्तनों और दीवारों पर उत्खचित लेख अभिलेख की सीमा में आते हैं। सामान्यत: किसी अभिलेख की मुख्य पहचान उसका महत्व और उसके माध्यम का स्थायित्व है।
Explanation:
अभिलेख तैयार करने के लिए व्यावसायिक कारीगर होते थे। साधारण हस्तलेख तैयार करनेवालों को लेखक, लिपिकर, दिविर, कायस्थ, करण, कर्णिक, कर्रिणन्, आदि कहते थे; अभिलेख तैयार करनेवालों की संज्ञा शिल्पों, रूपकार, शिलाकूट आदि होती थी। प्रारंभिक अभिलेख बहुत सुंदर नहीं होते थे, परंतु धीरे धीरे स्थायित्व और आकर्षण की दृष्टि से बहुत सुंदर और अलंकृत अक्षर लिखे जाने लगे और अभिलेख की कई शैलियाँ विकसित हुई। अक्षरों की आकृति और शैलियों से अभिलेखों के तिथिक्रम को निश्चित करने में सहायता मिलती है।
भारत में स्वस्तिक, सूर्य, चंद्र, त्रिरत्न, बुद्धमंगल, चैत्य, बोधिवृक्ष, धर्मचक्र, वृत्त, ओउम् का आलंकारिक रूप, शंख, पद्य, नंदी, मत्स्य, तारा, शस्त्र, कवच आदि इस प्रयोजन के लिए काम में आते थे। सामी देशों में चंद्र और तारा, ईसाई देशों में स्वस्तिक, क्रास आदि मांगलिक चिह्न प्रयुक्त होते थे। अभिलेख के ऊपर, नीचे या अन्य किसी उपयुक्त स्थान पर लांछन अथवा अंक प्रामाणिकता के लिए लगाए जाते थे।
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