Hindi, asked by maneeshjhaltp2409, 20 days ago

अभिनेयता अथवा रंगमंचीयता की दृष्टि से ध्रुवस्वामिनी की समीक्षा कीजिए​

Answers

Answered by 11karmon86275
5

Answer:

469-463-1693

Explanation:

Answered by sadiaanam
2

Answer:

ध्रुवस्वामिनी जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित प्रसिद्ध हिन्दी नाटक है। यह प्रसाद की अंतिम और श्रेष्ठ नाट्य-कृति है।

इसका कथानक गुप्तकाल से सम्बद्ध और शोध द्वारा इतिहाससम्मत है। यह नाटक इतिहास की प्राचीनता में वर्तमान काल की समस्या को प्रस्तुत करता है। प्रसाद ने इतिहास को अपनी नाट्याभिव्यक्ति का माध्यम बनाकर शाश्वत मानव-जीवन का स्वरुप दिखाया है, युग-समस्याओं के हल दिए हैं, वर्तमान के धुंधलके में एक ज्योति दी है, राष्ट्रीयता के साथ-साथ विश्व-प्रेम का सन्देश दिया है। इसलिए उन्होंने इतिहास में कल्पना का संयोजन कर इतिहास को वर्त्तमान से जोड़ने का प्रयास किया है।

रंगमंच की दृष्टि से तीन अंकों का यह नाटक प्रसाद का सर्वोत्तम नाटक है। इसके पात्रों की संख्या सीमित है। इसके संवाद भी पात्रा अनुकूल और लघु हैं। भाषा पात्रों की भाषा के अनुकूल है। मसलन ध्रुवस्वामिनी की भाषा में वीरांगना की ओजस्विता है। इस नाटक में अनेक स्थलों पर अर्धवाक्यों की योजना है जो नाटक में सौंदर्य और गहरे अर्थ की सृष्टि करती है।

Explanation:

नाटक के पात्र

ध्रुवस्वामिनी – रामगुप्त की पत्नी और महादेवी।

शकराज – गौण पात्र। महत्वकांक्षी, रणकुशल एवं कुटनीतिज्ञ साथ ही क्रूर भी है। जो कि रामगुप्त के राज्य को चारों ओर से घेर लेता है।

कोमा – मिहिरदेव की पालित पुत्री जो कि शकराज से प्रेम करती है।

चंद्रगुप्त – समुन्द्रगुप्त का छोटा पुत्र।

साहसी, पराक्रमी, वंश और समाज की गौरव रक्षा करने वाला।

रामगुप्त – समुन्द्रगुप्त का बड़ा पुत्र।

प्रमुख पुरूष पात्र और विलासी प्रवृति का व्यक्ति।

शिखरस्वामी – रामगुप्त का विश्वासपात्र।

गुप्तकुल का अमात्य को की धूर्त और स्वार्थी है। छल प्रपंच से परिपूर्ण व्यक्ति।

मिहिरदेव – शकराज के आचार्य कोमा के धर्म पिता। गौण पात्र।

मन्दाकिनी – चन्द्रगुप्त और रामगुप्त की बहन। साहसी और प्रगतिशील युवती है।

पुरोहित – धर्मशास्त्र के आचार्य।

प्रथम अंक

शिविर के पिछले भाग का मंचन है।

जहाँ ध्रुवस्वामिनी खड्गधारिणी से बात करती हुई दिखाई देती है।

खड्गधारिणी चंद्रगुप्त की मुक्ति की बात करती है कि यदि आप राजाधिराज से उनकी मुक्ति की राह प्रशस्त कर सके तो।

धुरवस्वामिनी अपनी स्वर्ण पिंजड़े की व्यथा बयाँ करती है।

उसे कोई सम्मान प्राप्त नहीं क्योंकि उसके पति मदिरा और विलसिनियों में डूबे रहते है।

आक्रमण की सुचना को रामगुप्त अनसुना कर देता है चन्द्रगुप्त के लिए ध्रुवस्वामिनी का प्रेम उसके लिए ज़्यादा महत्वपूर्ण होता है।

शिखरस्वामी शकराज का संदेश सुनाता है कि संधि की शर्त पर उन्होंने ध्रुवस्वामिनी को अपने लिए और सामंतो की पत्नियों को अपने सैनिकों के लिए माँगता है।

रामगुप्त इसके लिए सहमत हो जाता है।

ध्रुवस्वामिनी यह सब सुनकर आत्महत्या करने जाती है तभी चंद्रगुप्त उसे बचा लेता है।

चन्द्रगुप्त तभी सारे घटनाक्रम से परिचित होता है और एक तरकीब सोचता है।

उसने स्त्री वेश में शकशिविर में जाने की बात करता है ध्रुवस्वामिनी भी साथ चलने को तैयार होती है।

ध्रुवस्वामिनी की मुक्ति के मार्ग में चन्द्रगुप्त का पहला कदम है।

यह अंक अभिनेयता की दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं क्योंकि पूरे अंक में शिविर का ही दृश्य विद्यमान रहता है।

ध्रुवस्वामिनी जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित प्रसिद्ध हिन्दी नाटक है। यह प्रसाद की अंतिम और श्रेष्ठ नाट्य-कृति है।

इसका कथानक गुप्तकाल से सम्बद्ध और शोध द्वारा इतिहाससम्मत है। यह नाटक इतिहास की प्राचीनता में वर्तमान काल की समस्या को प्रस्तुत करता है। प्रसाद ने इतिहास को अपनी नाट्याभिव्यक्ति का माध्यम बनाकर शाश्वत मानव-जीवन का स्वरुप दिखाया है, युग-समस्याओं के हल दिए हैं, वर्तमान के धुंधलके में एक ज्योति दी है, राष्ट्रीयता के साथ-साथ विश्व-प्रेम का सन्देश दिया है। इसलिए उन्होंने इतिहास में कल्पना का संयोजन कर इतिहास को वर्त्तमान से जोड़ने का प्रयास किया है।

रंगमंच की दृष्टि से तीन अंकों का यह नाटक प्रसाद का सर्वोत्तम नाटक है। इसके पात्रों की संख्या सीमित है। इसके संवाद भी पात्रा अनुकूल और लघु हैं। भाषा पात्रों की भाषा के अनुकूल है। मसलन ध्रुवस्वामिनी की भाषा में वीरांगना की ओजस्विता है। इस नाटक में अनेक स्थलों पर अर्धवाक्यों की योजना है जो नाटक में सौंदर्य और गहरे अर्थ की सृष्टि करती है।

https://brainly.in/question/49128303

#SPJ3

Similar questions