Environmental Sciences, asked by sk61067010, 7 months ago

अच्छी गुणवत्ता वाले बीजों का वर्गीकरण कितने प्रकार से होता हैl​

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Answered by shubhda86
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बीज का महत्व एवं उत्पादन तकनीकी

प्रदेश के कृषि में बीज गुणता का विशिष्ट महत्व है क्योंकि हमारे यहॉ फसलों की आवश्यकतानुसार सर्वोत्त जलवायु होते हुए भी लगभग सभी फसलों का औसत उत्पादन बहुत ही कम है। जिसका प्रमुख कारण प्रदेश के कृषकों द्वारा कम गुणता वाले बीजों का लगातार प्रयोग है। जिससे फसलों में दी जाने वाली अन्य लागतों का भी हमें पूर्ण लाभ नहीं मिल पाता है। फसलों में लगने वाले अन्य लागत का अधिकतम लाभ अच्छी गुणता वाले बीजों का प्रयोग करके ही लिया जा सकता है। उच्च गुणवत्ता के प्रमाणित बीज के प्रयोग से ही लगभग 20 प्रतिशत उत्पादकता/उत्पादन में वृद्धि की जा सकती है।

अतः किसान भाईयों को चाहिए कि वे अपनी फसलों के बीज जैस-धान, गेहूं, समस्त दलहनी फसलें एवं राई-सरसों तथा सूरजमुखी को छोड़कर समस्त दलहनी फसलों का बीज प्रत्येक तीन वर्ष में बदल कर बुवाई की जानी चाहिए।इसी प्रकार ज्वार, बाजरा, मक्का, सूरजमुखी, अरण्डी एवं राई/सरसों की फसलों में प्रत्येक तीन वर्षा पर बीज बदल कर बुवाई की जानी चाहिए।

उस बीज को उत्तम कोटि का माना जाता है जिसमें आनुवांशिक शुद्धता शत-प्रतिशत हो अन्य फसल एवं खरपतवार के बीजों से रहित हो, रोग व कीट के प्रभाव से मुक्त हो, जिसमें शक्ति और ओज भरपूर हो तथा उसकी अंकुरण क्षमता उच्च कोटि की हो, जिसमें खेत में जमाव और अन्ततः उपज अच्छी हो।

कृषि विभाग द्वारा खरीफ, रबी एवं जायद फसलों के विभिन्न प्रजाति के प्रमाणित बीजों का वितरण सभी जनपदों के विकास खण्ड स्थिति बीज भण्डार के माध्यम से उपलब्ध कराया जा रहा है।

अतः किसान भाईयों से अनुरोध है कि अपने विकास खण्ड से बीज प्राप्त कर अपने पुराने बीजों को बदलते हुए प्रमाणित बीजों से बुवाई करें, जिससे उनकी फसलों के उत्पादन में वृद्धि हो।

शोधित बीज बच जाने पर पुनः प्रयोग करें। बीज प्रयोगशाला से पुनः जमाव परीक्षण कराकर मानक के अनुरूप होने पर पुनः बोया जा सकता है।

देश एवं प्रदेश की लगभग 70 प्रतिशत जनसंख्या की जीविका कृषि पर आधारित है। जिसके आर्थिक एवं सामाजिक स्तर में वांछित सुधार केवल खेती के सुदृढ़ीकरण से ही संभव हैं। इन उन्नतिशील प्रजातियों के उच्च गुणवत्तायुक्त बीजों का टिकाऊ कृषि उत्पादन में उच्च स्थान है। कृषकों को मात्र नवीनतम प्रजातियों के प्रमाणित बीज ही उपलब्ध करा देने से उत्पादन में 15 से 20 प्रतिशत की वृद्धि हो सकती है।

प्रदेश में गेहूं, धन एवं अन्य फसलों की प्रतिस्थापना दर क्रमशः 30, 25, एवं 5-8 प्रतिशत के लगभग हैं जबकि संकर बीजों के प्रयोग से 15 से 20 प्रतिशत तक अधिक उपज प्राप्त होती है

बीज

पौधे का वह भाग जिसमें भ्रूण अवस्थित है, जिसकी अंकुरण क्षमता, आनुवंशिक एवं भौतिक शुद्धता तथा नमी आदि मानकों के अनुरूप होने के साथ ही बीज जनित रोगों से मुक्त है।

बीज के प्रकार

केन्द्रीय प्रजाति विमोचन समिति (सी०वी०आर०सी०) के विमोचन एवं भारत सरकार की अधिसूचना के उपरान्त ही बीज उत्पादति किया जा सकता है। अधिसूचित फसलों/प्रजातियों की निम्न श्रेणियॉ होती है।

1. प्रजनक बीज

यह बीज नाभकीय (न्यूक्लियस) बीज से बीज प्रजनक अथवा सम्बन्धित पादक प्रजनक की देखरेख में उत्पादित किया जाता है जिसकी आनुवंशिक एवं उच्च गुणवत्ता का पूरा ध्यान रखा जाता है। यह आधारीय बीज के उत्पादन का स्रोत है। इस बीज के थैलों पर सुनहरा पीला (गोल्डन) रंग का टैग लगता है जिसे सम्बन्धित अभिजनक द्वारा जारी किया जाता है।

2. आधारीय बीज

इस बीज का उत्पादन प्रजनक बीज से किया जाता है आवश्यकतानुसार आधारीय प्रथम से आधारीय द्वितीय बीज का उत्पादन किया है। इसकी उत्पादन, संसाधन, पैकिंग, रसायन उपचार एवं लेबलिंग आदि प्रक्रिया बीज प्रमाणीकरण संस्था की देखरेख में मानकों के अनुरूप होती है। इसके थैलों में लगने वाले टैग का रंग सफेद होता है।

3. प्रमाणित बीज

कृषकों को फसल उत्पादन हेतु बेचे जाने वाला बीज प्रमाणित बीज है जिसका उत्पादन आधारीय बीज से बीज प्रमाणीकरण संस्था की देख रेख में मानकों के अनुरूप किया जाता है। प्रमाणित बीज के टैग का रंग नीला होता है।

4. सत्यापित बीज (टी०एल०)

इसका उत्पादन, उत्पादन संस्था द्वारा आधारीय/प्रमाणित बीज से मानकों के अनुरूप किया जाता है। उत्पादन संस्था का लेविल लगा होता है या थैले पर उत्पादक संस्था द्वारा नियमानुसार जानकारी उपलब्ध कराई होती है।

बीज उत्पादन तकनीकी प्रक्रिया

इस विधि में एक योजना बनाकर बीज मानकों के अनुरूप वैज्ञानिक तरीकों से उत्पादित किया जाता है ताकि उत्पादन, संसाधन, भण्डारण एवं वितरण का कार्य प्रभावी ढंग से निष्पादित एवं बीज की गुणवत्ता बीज के बोने तक बनी रहे। इस प्रक्रिया की निम्न विशेषतायें हैं

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