Hindi, asked by rupinderkaur4115, 1 year ago

Adarsh vyakti ka pricay

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Answered by ashi9396
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अध्याय 1

संयमित दिनचर्या

जीवन तो सभी जीते हैं। मनुष्य भी और कीट, पशु भी। मनुष्यों के जीवन जीने में और अन्य जीव-जन्तुओं के जीवन जीने में बहुत अन्तर है। मानव का हर कार्य हमेशा पहले से सोचा हुआ होता है। हाँ, यह बात अलग है कि कुछ लोग जल्दबाजी में काम करते हैं जिनके बारे में उन्हें काफी समय पूर्व पता नहीं रहता। जल्दी का काम हमेशा शैतान का होता है। आदर्श-जीवन जीने वाला व्यक्ति ऐसा कोई काम नहीं करना चाहता, जिसके बारे में उसने पहले से सोचा न हो। किए जाने वाले कार्य को ऐसे लोग एक-दो दिन पहले से सोचकर चलते हैं।

मनुष्य की दिनचर्या में उसके सुबह से लेकर शाम तक के सारे क्रिया-कलाप या गतिविधियाँ आती हैं। हमें अपने दिन-भर के कार्यक्रमों के बारे में पूरा पता होना चाहिए। व्यक्ति की आदर्श दिनचर्या में निम्नलिखित बातें शामिल की जाती हैं-
(1) प्रातःकाल शीघ्र उठना
(2) शौच इत्यादि से निवृत्त होना एवं स्नान करना
(3) प्रभु-स्मरण
(4) चाय-नाश्ता
(5) कार्य क्षेत्र पर जाना
(6) दोपहर-भोजन
(7) सायंकालीन पुरुषार्थ
(8) दैनिक चार्ट भरना या डायरी लिखना
(9) शयन

1. प्रातःकाल शीघ्र उठना

सूर्योदय से पूर्व का समय बड़ा ही स्वास्थ्यप्रद और आनन्दकारी होता है। उस समय चारों ओर के वातावरण में पवित्र ठण्डी हवाएँ चलती हैं तथा मनुष्य के अन्दर श्रेष्ठ संस्कारों का उदय होता है ऐसे सुहावने समय में जो लोग बिस्तरों में सोए रहते हैं वे अपने भाग्य से वंचित हो जाते हैं। योगी-तपस्वियों एवं भक्तों के लिए साधना करने का यही तो समय होता है।
महापुरुषों का कथन है कि प्रातः जल्दी उठने से मनुष्य दीर्घायु को प्राप्त होता है। जिसे सौ वर्ष तक जीना हो वह जल्दी उठना सीखे। बहुत से लोग सर्दियों के अतिरिक्त गर्मियों के दिनों में भी छत पर काफी देर तक सोए रहते हैं। जब तक कि धूप सिर पर नहीं चढ़ आती, ये लोग करवट भी नहीं बदलते। सुबह देर तक सोने के कारण उनके अन्दर उबासी तथा आलस्य समाया रहता है। यह आलस्य उन्हें काफी देर तक उदास बनाए रहता है।

सुबह देर तक सोये रहने का रोग प्रायः उन लोगों के अन्दर पनपता है जो देर रात अपने-अपने घरों में टी.वी. देखते रहते हैं या किसी अन्य कारण से रात में काफी देर तक जागते रहते हैं। ऐसे लोग शारीरिक व मानसिक रूप से प्रायः दुर्बल देखने में आते हैं। निद्रा का असन्तुलन उनके स्वास्थ्य को चिड़चिड़ा बना देता है। रात्रि दस बजे से लेकर सुबह 3-4 बजे तक का समय भगवान ने मनुष्य को सोने के लिए दिया है। उस समय सभी दफ्तर, दुकानें तथा बाजार बन्द रहते हैं।
सुबह के समय हमें जल्दी उठाने वाले हमारे कई मित्र हैं। इनमें से एक तो मुर्गा है, पेड़ों की चिड़ियाएँ हैं तथा मस्जिद के मौलवी साहब भी अजान लगाकर सोए हुए मनुष्य को जगाने की कोशिश करते हैं। मन्दिर का पुजारी घण्टा बजाकर हमें जगाता है, घर में बड़े-बूढ़े एवं माता-पिता बच्चों को शीघ्र उठाने की कोशिश करते हैं।

जिन लोगों को दिन में कोई काम नहीं करना होता या जिनके सिर पर कोई जिम्मेवारी नहीं होती वे ही अधिक देर तक सोना चाहते हैं। शास्त्रों में कहा गया है कि सुबह भगवान भाग्य बाँटने के लिए पृथ्वी पर आता है किन्तु जो लोग सोए रहते हैं वे ईश्वर से कुछ भी प्राप्त किए बिना रह जाते हैं। आगे चलकर ऐसे लोगों को बहुत पछताना पड़ता है। बहुत सोने वाले या देर तक सोने वाले लोग अपने जीवन का कोई भी काम नहीं कर सकते ! उनके पास समय का प्रातः अभाव ही बना रहता है।
डॉ. बी.एल. वत्स ने अपनी पुस्तक ‘सफल जीवन कैसे जिएँ’ में समय के महत्त्व को लेकर लिखा है-
‘‘विधाता ने जब मानव को जन्म दिया तो उसने 92 करोड़ साँसों का वरदान देकर पृथ्वी पर भेजा-
‘क्रोड बानवे चलत हैं, उम्मर भर की स्वाँस।’
उसने इसके साथ ही साथ-
‘बैठे बारह, चले अठारह, सोवत में बत्तीस।’
का विधान बना दिया अर्थात् बैठे हुए व्यक्ति की एक मिनट में बारह श्वासें चलती हैं। चलते हुए व्यक्ति की एक मिनट में अठारह और सोते हुए व्यक्ति की एक मिनट में बत्तीस श्वासें चलती हैं। इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि सोने से जीवन जल्दी समाप्त होता है। कार्यशील होने से आयु बढ़ती है। सीधा सिद्धान्त है कि जब कम श्वासें खर्च होंगी तो आयु बढ़ेगी ही।’’

उपर्युक्त कथन का यह मतलब नहीं है कि हम बिलकुल सोना ही छोड़ दें किन्तु अधिक न सोएँ तथा सुबह शीघ्र उठे। इससे हम हमेशा चुस्त-स्फूर्त, तन्तुरुस्त और प्रसन्नचित बने रहेंगे।

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