Adhyapak 10 lines essay small
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सभी अध्यापकों का व्यवहार मेरे प्रति अच्छा होते हुए भी मुझे अंग्रेज़ी के अध्यापक सबसे अच्छे और प्रिय लगते हैं। इसका एक कारण तो यह
हो सकता है कि उनका बाहरी व्यक्तित्व जितना सुन्दर और आकर्षक है, उनकी बोलचाल, व्यवहार और अध्यापन का ढंग भी उतना ही सुन्दर है। वह जो भी पढ़ाते हैं, उसका एक चित्र-सा खड़ा कर विषय को साकार कर देते हैं। उनका पढ़ाया और समझाया गया पाठ छात्र कभी नहीं भूलते। मेरे इन अध्यापक का चेहरा हमेशा एक निर्मल मुस्कान से खिला रहता है। मैंने उन्हें कभी भी कक्षा के बाहर या अंदर बेकार की बातें करते हुए सुना है, न देखा है। उनकी वेशभूषा भी उनके व्यक्तित्व के अनुरूप फबने वाली होती है-एकदम उनके विचारों की तरह सीधी-सादी।
हमारी प्रात:कालीन, साप्ताहिक या मासिक सभाओं में जब कभी वह कुछ बोलने या भाषण देने आते हैं तो बाकी सब कुछ भूलकर छात्र सिर्फ उन्हीं को सुनते हैं। सचमुच, यदि सभी अध्यापक उनके जैसे आदर्श वाले हो जाएँ। तो सभी छात्रों का बहुत भला हो सकता है। और आजकल अध्यापक वर्ग पर जो कई प्रकार के लांछन लगाए जाते रहते हैं, उनका निवारण भी सरलता से संभव हो सकता है।
मेरे प्रिय अध्यापक मृदुभाषी हैं । उनकी मधुर बोली से विद्यार्थी ही नहीं, उनके सहयोगी भी प्रभावित होते हैं । विद्यालय में उनका बहुत सम्मान किया जाता है । विद्यालय की ओर से जब कभी शैक्षिक भ्रमण का कार्यक्रम आयोजित होता है वे हमेशा साथ जाते हैं । उनकी उपस्थिति मात्र से ही विद्यार्थी सहज और अनुशासित हो जाते हैं । वे विद्यार्थियों को शारीरिक दंड देने में विश्वास नहीं रखते । वे हमें कहते हैं-गलतियाँ करो नई-नई गलतियाँ करो उसी से सीखोगे लेकिन एक ही गलती को बार-बार मत दोहराओ । जो एक ही गलती को बार-बार दोहराते हैं वे मूढ़ होते हैं ।
विद्यार्थियों के ऊपर इस तरह के प्रेरणादायी वाक्यों का जादू का सा असर होता है ।
ऐसे आदर्श अध्यापक का आशीर्वाद पाकर किसे गर्व नहीं होगा । वे विद्यार्थियों के साथ किसी प्रकार का भेद- भाव नहीं करते । सबको समान दृष्टि से देखते हैं । निर्धन तथा मेधावी छात्रों को वे विद्यालय की ओर से उचित सहूलियतें दिलवाते हैं । वे विद्यार्थियों को स्वास्थ्यप्रद आदतें अपनाने के लिए प्रेरित करते हैं । कक्षा और विद्यालय कर सफाई पर भी उनकी दृष्टि रहती है । वे हमें सकारात्मक सोच रखने तथा वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाने के लिए प्रेरित करते रहते हैं ।
समाज में गुरु का स्थान-प्राचीन काल में हमारे समाज में गुरु का महत्व सर्वोपरि रहा हैं. गुरु, आचार्य, शिक्षक या अध्यापक ये सभी समानार्थी शब्द हैं. अध्यापक एक ऐसा कलाकार होता हैं, जो अपने शिष्यों के व्यक्तित्व का निर्माण बड़ी सहजता और कुशलता से करता हैं. हमारे मन के अज्ञान को दूर कर उसमें ज्ञान का आलोक फैलाने वाला गुरु ही होता हैं.
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