Agar kitabe na hoti to
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वस्तुतः ज्ञान की प्राप्ति के दो मार्ग हैं -सत्संगति और स्वाध्याय | सत्संगति का अर्थ -ज्ञानी मनुष्यों के साथ रहना , उनके गुणों का अनुसरण करना ,उनके ज्ञान को ग्रहण करना आदि होता है , जबकि स्वाध्याय का मतलब अपने से अध्ययन के माध्यम से ज्ञान अर्जित करना अर्थात पुस्तकों का अध्ययन करना होता है |
यानि ज्ञानी होना पुस्तकों के अध्ययन से संभव है | ऐसे कई उदाहरण आपको मिलेंगे जिन्होंने केवल पुस्तकों के अध्ययन मात्र से अपने विवेक व ज्ञान का परचम लहराया है - माइकल फैराडे , थॉमस अल्वा एडिशन , पाणिनी , एकलव्य आदि ऐसे महान व्यक्ति हैं जिन्होंने अनौपचारिक शिक्षा (पुस्तकों का केवल अध्ययन ) से अद्वितीय मुकाम हासिल किया |
इससे इतना तो अस्पष्ट है की पुस्तक हमारे जीवन का वह अभिन्न अंग है ,जो हमें सफलता क्षमता रखती है | किसी भी चीज का न होना वहां की शून्यता को दर्शाता है | आपने कहा यदि पुस्तक न हो तो क्या होगा ?पुस्तक नहीं होगा तो हम स्वाध्याय से वंचित रह जायेंगे , हम ज्ञान के लिए केवल ज्ञानी पुरुषों पर निर्भर हो जायेंगे | किसी भी चीजों को समझने के लिए हमे एक बेहतर श्रोता बनना होगा | ज्ञान को अर्जित करने की क्षमता सीमित हो जाएगी | हम केवल वही जान पाएंगे जो हमारे शिक्षक पढ़ाएँगे | आप जरा सोचे केवल शिक्षक के पढ़ाये पाठ से क्या संपूर्ण उस पाठ का सपूर्ण ज्ञान संभव है ? नहीं न !
वैसे इंटरनेट की आधुनिक दुनिया हमे यह सिद्ध कर रही बगैर पुस्तक आप ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं | विकिपीडिया , गूगल जैसे सर्च इंजन दुनिया को ज्ञान को नयी दिशा दी है | कोई भी जानकारी आप एक क्लिक मात्र से प्राप्त कर सकते हैं | अर्थात पुस्तक की अावश्यकता अब कम होने लगी है | छात्र स्मार्ट फ़ोन का उपयोग कर ज्ञान ग्रहण कर रहे हैं | छात्र ज्ञान उन्नत प्राप्त कर उत्कृष्ट रोजगार प्राप्त कर रहे हैं |
किन्तु यह तो अटल सत्य है कि ज्ञान प्राप्त करने का असली आनंद पुस्तक ही दे सकता है ,एक -एक अक्षर -शब्द -वक्य अपने आँखों से पढ़ना, किताब के पन्नो को अपने पलटना क्या से सुख गूगल या विकिपीडिया दे सकता है?, नहीं न !!इसमें अतिश्योक्ति नहीं होगी की किताब या पुस्तक हमारी दिनचर्या में शामिल वह भोजन है , पेट भरने हेतु जिसका स्वाद हर कोई बेझिचक चखना चाहता है | |
यानि ज्ञानी होना पुस्तकों के अध्ययन से संभव है | ऐसे कई उदाहरण आपको मिलेंगे जिन्होंने केवल पुस्तकों के अध्ययन मात्र से अपने विवेक व ज्ञान का परचम लहराया है - माइकल फैराडे , थॉमस अल्वा एडिशन , पाणिनी , एकलव्य आदि ऐसे महान व्यक्ति हैं जिन्होंने अनौपचारिक शिक्षा (पुस्तकों का केवल अध्ययन ) से अद्वितीय मुकाम हासिल किया |
इससे इतना तो अस्पष्ट है की पुस्तक हमारे जीवन का वह अभिन्न अंग है ,जो हमें सफलता क्षमता रखती है | किसी भी चीज का न होना वहां की शून्यता को दर्शाता है | आपने कहा यदि पुस्तक न हो तो क्या होगा ?पुस्तक नहीं होगा तो हम स्वाध्याय से वंचित रह जायेंगे , हम ज्ञान के लिए केवल ज्ञानी पुरुषों पर निर्भर हो जायेंगे | किसी भी चीजों को समझने के लिए हमे एक बेहतर श्रोता बनना होगा | ज्ञान को अर्जित करने की क्षमता सीमित हो जाएगी | हम केवल वही जान पाएंगे जो हमारे शिक्षक पढ़ाएँगे | आप जरा सोचे केवल शिक्षक के पढ़ाये पाठ से क्या संपूर्ण उस पाठ का सपूर्ण ज्ञान संभव है ? नहीं न !
वैसे इंटरनेट की आधुनिक दुनिया हमे यह सिद्ध कर रही बगैर पुस्तक आप ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं | विकिपीडिया , गूगल जैसे सर्च इंजन दुनिया को ज्ञान को नयी दिशा दी है | कोई भी जानकारी आप एक क्लिक मात्र से प्राप्त कर सकते हैं | अर्थात पुस्तक की अावश्यकता अब कम होने लगी है | छात्र स्मार्ट फ़ोन का उपयोग कर ज्ञान ग्रहण कर रहे हैं | छात्र ज्ञान उन्नत प्राप्त कर उत्कृष्ट रोजगार प्राप्त कर रहे हैं |
किन्तु यह तो अटल सत्य है कि ज्ञान प्राप्त करने का असली आनंद पुस्तक ही दे सकता है ,एक -एक अक्षर -शब्द -वक्य अपने आँखों से पढ़ना, किताब के पन्नो को अपने पलटना क्या से सुख गूगल या विकिपीडिया दे सकता है?, नहीं न !!इसमें अतिश्योक्ति नहीं होगी की किताब या पुस्तक हमारी दिनचर्या में शामिल वह भोजन है , पेट भरने हेतु जिसका स्वाद हर कोई बेझिचक चखना चाहता है | |
Nikki57:
Perfect answer as Always ^_^
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